Wednesday 19 September 2018

गुलाबी नगरी की मेरी पहली यात्रा की कुछ स्मृतियाँ भाग 06.

आज भाग 06 में आप पढ़ेंगे...! मुख्य सड़क से गोविंद देव जी का मंदिर तक का यादगार सफर.

हवा महल से थोड़ा आगे जाने पर प्रसिद्ध गोविंद देव जी का मंदिर में प्रवेश करने के लिए दो दरवाजे है। जिसमें से मैंने दूसरे दरवाजे को चुना, इन दरवाजों से गुजरने के बाद हम मंदिर की तरफ बढ़ सकते है। मुख्य सड़क पर बने दूसरे दरवाजे में प्रवेश के बाद करीब 500 मीटर चलने के बाद गोविंद देव जी का मंदिर का एक ओर दरवाजा आता है। इस 500 मीटर की सड़क पर दोनों तरफ अच्छा मार्किट है। जहां विभिन्न प्रकार की दुकानें भी नजर आने लगी, जिनमें चाय-नाश्ते से लेकर प्रसाद आदि विभिन्न प्रकार की चीजें बिक रही थी। वैसे मैं सुबह काफी जल्दी गया था, जब तक मार्किट पूरी तरह से खुले ही नहीं थे और दूसरा रविवार होने की वजह से ज्यादातर मार्किट बन्द ही रहते है। तो मैं पूरे खुले मार्किट को नहीं देख पाया। यह एक इच्छा अधूरी रह गयी। जो अगली बार की जयपुर यात्रा के समय पूरी करूँगा। इसी मार्किट में एक बहुत ही बड़ा गुरुद्वारा भी है, जिसमें सिक्ख धर्म के लोगों के अलावा भी अन्य धर्म के लोग जा रहे थे। इस गुरुद्वारे में एक विद्यालय भी चल रहा है, जो शायद सिक्ख धर्म का ही होगा, जो श्री गुरुनानक देव माध्यमिक विद्यालय (सेवा संघ) के नाम से जाना जाता है। यह एक धार्मिक  मुझे भी अंदर से गुरुद्वारा देखने की इच्छा हुई, पर समय की मर्यादा को ध्यान में रखकर बाहर से ही नमन कर आगे बढ़ गया।

थोड़ा आगे चलने पर एक ओर दरवाजा आता है। इस दरवाजे से अंदर प्रवेश करने पर दोनों तरफ फूल-माला, प्रसाद, भगवान के वस्त्र, अगरबत्ती, मिठाई आदि की दुकानें थी, जहां लोगो का जमावड़ा लगा हुआ था। चूंकि मैं पहली बार यहां आया तो मुझे पता नहीं था कि यहां मंदिर में क्या चढ़ाया जाता है? तो इसकी जानकारी के लिए मैंने वही एक दुकानदार को पूछा, तो उसने मुझे बताया कि यहां अत्तर, अगरबत्ती और प्रसाद चढ़ा सकते है। तो मैंने अत्तर, अगरबत्ती और प्रसाद के रूप में मिश्री ले ली, क्योंकि मुझे पता है कि कृष्ण भगवान को मिश्री का भोग लगाया जाता है। इस तरह मैंने अत्तर, अगरबत्ती और मिश्री के साथ श्री गोविंद देव जी का मंदिर के मुख्य दरवाजे में प्रवेश किया। जिसमें से होकर गुजरने के बाद सब तरफ लोग ही लोग नजर आने लगे। गोविंद देव जी का मंदिर में प्रवेश के साथ ही एक अलग ही शांति का अनुभव होता है। श्री गोविंद देव जी का मंदिर के मुख्य दरवाजे के बाहर से ही सब तरफ जय श्री कृष्णा और राधे-राधे की आवाजें आने लगी। वहां श्री कृष्णा के भजन भी लगातार चल रहे थे, जिससे कि एक भक्तिमय माहौल अनायास ही बन रहा था और अपने अंदर एक धनात्मक (Positive) ऊर्जा का एहसास हो रहा था।

कृमशः...

(आगे... गोविंद देव जी का मंदिर की भव्यता और इससे जुड़े इतिहास का वर्णन)
पढ़ते रहिए, गुलाबी नगरी की......... भाग 07.

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