Tuesday 27 February 2018

आडम्बर: एक दीमक जो समाज को खोंखला बना रही है।

मेरे द्वारा समाजहित में लिखा गया एक लेख जो "जब सभी धर्मों और सम्प्रदायों में गुरुदेव के आदेश का पालन होता है, तो अपने सम्प्रदाय में क्यों नहीं?" नामक शीर्षक के साथ आया था। जिसे मैंने दो भागों में लिखा था। उसमें मैंने गुरुदेवश्री की आज्ञा का खुलेआम समाज के ही लोगों द्वारा हो रहे उलंगन के बारे में मेरे विचार लिखे थे। जिसमें मैंने गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. के एक सुप्रसिध्द अनमोल वचन के बारे में लिखा था। वह अनमोल वचन है...
"जनम, मरण, परण सस्ता होना चाहिए,
क्योंकि यह सबके घर में होता है।"

यह एक ऐसा अनमोल वचन है, जो गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और सार्थक अनमोल वचन है (ऐसा मेरा मानना है।)

आज मैं आपको इसी अनमोल वचन के इर्द-गिर्द लेकिन गुरुदेवश्री के वृहद विचारों को मेरे विचारों द्वारा समझाने का एक प्रयास करने जा रहा हूँ और मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी मनःस्थिति को समझने का प्रयास जरूर करेंगे।

इस अनमोल वचन में दिखाई तो सिर्फ दो पंक्तियां ही दे रही है। पर मैं इसे पूरे जैन धर्म का सार कह दु तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इसमें गुरुदेवश्री ने जो "जनम-मरण-परण" शब्द प्रयोग किए है। इन तीनों शब्दों में पूरा गृहस्थ-जीवन समाहित है और जब पूरा गृहस्थ-जीवन का वर्णन हो गया तो मेरा मानना है कि पूरे जैन धर्म का सार इसमें समाहित हो जाता है।

अब मैं आपको इस अनमोल वचन के भावार्थ के साथ-साथ इसमें छिपी गुरुदेवश्री की वृहद सोच को मेरे शब्दों में समझाने का प्रयास करूंगा। जो कुछ इस प्रकार है...
पहली पंक्ति...
"जनम, मरण, परण सस्ता होना चाहिए,"
इसमें गुरुदेवश्री ने जनम से लेकर मरण तक के सभी कार्यों का वर्णन कर दिया है। दिखने में सिर्फ तीन शब्द है, पर सोचो तो पूरा जीवन समाहित हो जाता है। इसमें गुरुदेवश्री का सीधा भावार्थ है कि जनम मतलब आप अपने परिवार में आए नन्हें मेहमान का स्वागत करते है, जिसे आप यादगार बनाना चाहते है और बनाना भी चाहिए। आखिर खुशी का जो मौका है। पर इसे यादगार बनाने के लिए जो फिजूल खर्ची देखी जाती है, जो दिखावा किया जाता है। उसे गुरुदेवश्री ने गलत बताया है। यह समाज के लिए धीमें जहर के समान है। जो एक दिन पूरे समाज को अंदर से खोंखला बना देगा। इसमें गुरुदेवश्री ने दूसरा शब्द मरण का इस्तेमाल किया है। जिससे सीधा तात्पर्य मृत्युभोज से है। आज हमारे समाज में मृत्युभोज का एक चलन सा हो गया है। किसी परिवार में दुःख की घड़ी आई हुई होती है और उस परिवार का हर सदस्य आपके खाने की तैयारी में लगा रहता है। जबकि होना यह चाहिए कि किसी के दुःख में आप सहभागी बने, लेकिन ऐसे सहभागी न बने कि आपके लिए उस परिवार को पहले वाले कष्ट को भुलाकर एक नया कष्ट उठाना पड़े। गीता में भी श्रीकृष्ण भगवान ने मृत्युभोज को जहर के समान बताया है और जैन मुनि तो सदियों से कहते आ रहे है कि यह समाज में एक कुरीति है, इसे बंद करो। (मृत्युभोज पर मेरा एक विस्तृत लेख पहले भी आ चुका है, जिसे आप यहां पढ़ें... http://mypersonalthinkmynewblock.blogspot.com/2016/04/blog-post_74.html) और तीसरा शब्द गुरुदेवश्री ने बताया है परण। जिसको मैं सबसे खर्चीला कह दु तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस शब्द के पीछे जितना खर्च हमारा समाज कर रहा है, उतना तो जनम और मरण को मिलाकर भी नहीं होता। परण का अर्थ तो आप सभी को पता ही है शादी। जो जीवन में एक ही बार होती है या मैं यू कहु कि आपकी आंखों के सामने और आपकी समझ में आपके जीवन के सबसे अनमोल पल शादी ही है। क्योंकि जनम के समय आपमें समझ नहीं थी और मरण के समय आपको कुछ दिखाई नहीं देता और जो काम सबसे समझदारी में किया जाता है उसमें दिखावा भी उतना ही ज्यादा होता है। अब शादी में दिखावा सबसे ज्यादा नाच-गान और खाने में देखा जा सकता है। (नाच-गान में कोरियोग्राफर पर पिछले कुछ समय से अपने समाज में काफी बहस हो रही है, जिसके लिए मैंने भी एक लेख लिखा था। मुझे इस लेख के लिए खट्टे-मीठे रिप्लाई आए थे। इस लेख को आप भी पूरा पढ़े... https://mypersonalthinkmynewblock.blogspot.com/2017/08/blog-post_29.html) इस लेख में मैंने नाच-गान का समर्थन किया है, पर अन्य जाति या धर्म के कोरियोग्राफर का विरोध किया है। समाज के कुछ सदस्यों का कहना है कि यह एक फिजूलखर्ची है और कुछ इसे अश्लील हरकतों से भी जोड़कर देख रहे है और खुद गुरु सौभाग्य मुनि जी म. सा. ने भी इसका विरोध किया है। जो कुछ हद तक सही भी है। पर मेरा मानना है कि कोई भी कार्य अगर मर्यादा में और धर्म-संगत हो तो ठीक है और अगर मर्यादा में नहीं हो तो फिर उस पर सामाजिक प्रतिबंध अतिआवश्यक हो जाता है और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, जो काफी सराहनीय कदम है। अगर समाज में किसी भी कदम से आडम्बर रुकता है तो उसे हम सराहनीय ही कहेंगे। शादी-ब्याह में नाच-गान के बाद खाने पर बहुत ही फालतू खर्च होता हैं, जिसे हम आडम्बर की श्रेणी में रख सकते है। क्योंकि जो खर्च फालतू हो, उससे किसी के फायदे की बजाय किसी का नुकसान और अपमान हो तो ऐसे खर्च को ही तो हम आडम्बर कहते है।

अब मैं दूसरी पंक्ति पर आना चाहता हूँ और वह है...
"क्योंकि यह सबके घर में होता है।"
इसमें गुरुदेव ने कारण बताया है कि यह सब सस्ता क्यों होना चाहिए? क्योंकि यह सबके घर होता ही है। जन्म लेने वाले को एक दिन मौत आनी ही है और जन्म हम सबका हुआ ही है। यह इस नश्वर संसार का नियम है। इसलिए इसमें दिखावा करने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। आज आपके घर जन्म, मरण या किसी की शादी का कार्यक्रम है और आपने ऐसा कार्यक्रम किया कि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। तो क्या आपको लगता है कि आपका पड़ोसी उसके घर ऐसा ही कार्य होने पर आपसे किसी भी मामले में पीछे रहेगा? और आपका जवाब होगा... नहीं। क्योंकि यह संसार का नियम है कि फला ने इतना किया तो मै उससे ज्यादा इतना करूँगा। ताकि लोग मेरी वाहवाही करें। लेकिन गुरुदेव ने फरमाया है कि आज आप इतना करोगे। कल आपका पड़ोसी आपसे ज्यादा इतना करेगा और परसों उसका पड़ोसी उससे भी ज्यादा करेगा। मतलब यह बढ़ना-चढ़ना चलता रहेगा, जिसका कोई अंत नहीं। क्योंकि मनुष्य-जीवन में तृष्णा और लालच कभी कम होते ही नहीं।

इसलिए है धार्मिक प्रेमियों! इन सबसे ऊपर उठना है। समाज को डूबने से बचाना है। तो इस अधार्मिक और खोंखले आडम्बर से ऊपर सोचना ही पड़ेगा और इसे समाज में जो स्थान आपने दिया है, उस स्थान से इसे हटाना ही होगा। क्योंकि आडम्बर और धर्म ठीक उसी प्रकार साथ नहीं चल सकते, जिस प्रकार अंधेरा और प्रकाश।

अब अगर मैं गुरुदेवश्री के इस अनमोल वचन का सार एक शब्द में कह दु तो वह होगा... आडम्बर पर सामाजिक प्रतिबंध। अतः मेरा समाज के सभी श्रावकों, गुरुभक्तों से निवेदन है कि आप सब ऐसे मुद्दो पर भी अपना ध्यान आकर्षित करें और आडम्बर को खत्म करने के कुछ नियम निर्धारित करके समाजहित के लिए कुछ सार्थक कदम उठाएं, ताकि समाज-हित निश्चित हो सके।

धन्यवाद! जय जिनेन्द्र!

(यह मेरे अपने विचार है। आपके विचार भिन्न हो सकते है। पर मेरा मानना है कि समाजहित में कार्य निरंतर होने ही चाहिए। आपके विचारों का सहर्ष स्वागत है। आप अपने विचार मुझे +91-9819715012 (मो) पर व्हाट्सएप्प द्वारा भेज सकते है।)

प्रवीण सी. सिंघवी,
मीडिया प्रभारी, श्रीसंघ, कड़ियाँ.
लेखक और व्यवसायी.