Sunday 10 September 2017

जब सभी धर्मों और सम्प्रदायों में गुरुदेव के आदेश का पालन होता है, तो अपने सम्प्रदाय में क्यों नहीं? भाग 02.

भाग 01 से आगे...
आपको गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. के एक सुप्रसिध्द अनमोल वचन के बारे में तो जानकारी होगी ही और वह आपको कही न कही देखने-पढने को भी मिल जाएगा। वह है...
"जनम, मरण, परण सस्ता होना चाहिए,
क्योंकि यह सबके घर में होता है।"

क्या आप मुझे यह बता सकते है कि इसका पालन कितने घरों में हो रहा है?
क्या आप मुझे बता सकते है कि इसका पालन अभी तक क्यों नहीं हुआ?
क्या आप मुझे बता सकते है कि क्या इसका पालन आज की जरूरत नहीं है?

अगर इनके उत्तर आपको नहीं मिले तो आप समझ लेना कि हमारे समाज द्वारा गुरुदेव का कितना अनादर हो रहा है? और यदि आपको इनके उत्तर मिल जाए, तो मैं भी जानना चाहूंगा।

अब हम इस बात को कुछ उदाहरणों द्वारा समझने का प्रयत्न करेंगे। जिसमें सबसे पहला उदाहरण आता है अपने ही समाज के एक सम्प्रदाय "तेरापंथ समाज" का।

जैसा कि आप सभी महानुभवों को तो पता ही है कि तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य श्री महाश्रमण जी म. सा. ने दिनांक 27 अगस्त, 2017 को राजरहाट (कोलकत्ता) में क्षमापना दिवस कार्यक्रम के दौरान अपने मन की बात को फरमाते हुए कहा कि "मैं चाहता हूँ कि संवत्सरी एक हो और इसके लिए वर्धमान श्रमण संघ सम्प्रदाय के आचार्य श्री शिवमुनि जी म. सा. और साधु मार्गी सम्प्रदाय के आचार्य श्री रामलाल जी म. सा. आपस में विचार-विमर्श कर जो भी तिथि हमें सुजाएँगे, वह तेरापंथ सम्प्रदाय को मंजूर होगी।"

और आपको यह जानकर बड़ा ही आश्चर्य होगा कि तेरापंथ सम्प्रदाय के किसी श्रावक ने इस गुरुआज्ञा का विरोध नहीं किया। जबकि आपको जानकारी हो तो पहले तेरापंथ सम्प्रदाय तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति में था और कई सालों से यह मुद्दा लटका हुआ है। लेकिन गुरुआज्ञा के आगे सभी नतमस्तक हो गए और सभी ने अपना अहम त्याग कर इस बात को स्वीकार भी कर लिया।

(तो क्या ऐसा श्रमण संघ सम्प्रदाय में नहीं हो सकता?)

दूसरा उदाहरण आप मुस्लिम धर्म का ले सकते है। आपको जानकारी हो तो मुस्लिम धर्म में बड़े धर्मगुरु (जिन्हें मौलाना कहा जाता है) किसी भी नियम को लेकर एक "फतवा" जारी करते है। जो पूरी दुनिया के मुस्लिम धर्म के अनुयायी बड़ी ही श्रद्धा से मानते है और वो भी बिना किसी विरोध के। फिर चाहे उस नियम से अनुयायी परेशान ही क्यों न हो? पर उसका विरोध कभी नहीं करते।

और एक तरफ हम है कि गुरुदेव हमारे फायदे के लिए कुछ फरमाते है, जिस पर हम ध्यान नहीं देते।

मेरे मन में कुछ सवाल है, जिनके उत्तर आपके अंतस में बसे है। कृपया उन्हें मुझ तक पहुंचाने की कृपा करें। यह सवाल कुछ इस प्रकार है....
01. क्या हमारे गुरुदेव श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. ने आज तक ऐसा कोई आदेश दिया, जिसका समाजहित में कोई मूल्य ना हो?

02. क्या गुरुदेव ने अपना कोई आदेश हमारे ऊपर जबरदस्ती थोपने की कोशिश की?

03. क्या गुरुदेव हमारा भला नहीं चाहते? (इस प्रश्न का उत्तर आपको कारण के साथ देना ही चाहिए।)

04. आप में से कितने श्रावक ऐसे है जो गुरुदेव के आडम्बर के विरोध में चलाए गए मिशन से जुड़े हुए है?
(आडम्बर पर बहुत ही जल्द मेरा एक लेख आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा, जिस पर अभी कार्य चल रहा है।)

अंत में मैं आपसे हाथ जोड़कर निवेदन करना चाहता हूँ कि अब भी अपने पास समय है। अभी तक समाज को बदला जा सकता है। गुरुदेव की आंखों के सामने समाज में कुछ अच्छे परिवर्तन हुए तो गुरुदेव को खुशी होगी और जहा गुरुदेव खुश हो गए, वहां उनके आशीर्वाद से ही हमारे वारे-न्यारे हो जाएंगे। बाकी खाली गुरुदेवों, तीर्थंकरों की जन्म जयंती या दीक्षा जयंती मात्र मना लेने से कुछ भी नहीं होने वाला। जब तक उनके दिखाए रास्ते पर हमारा समाज आगे नहीं बढ़ेगा, तब तक सब व्यर्थ है।

(आप में से किसी भी महानुभव को मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मैं माफी चाहता हूँ। इस मुद्दे पर आपके विचारों का मैं सहर्ष स्वागत करता हूँ। आप अपने विचार मुझे मेरे व्हाट्सएप्प नंबर +91-9819715012 पर भेज सकते है।)

जय जिनेन्द्र! जैनम जयति शासनं!!

(आपसे सविनय नम्र निवेदन है कि आप इस मैसेज को अपने सभी जैन ग्रुप्स और लोगों को बिना किसी कांट-छाँट के भेजे, ताकि समाज इस मुद्दे पर विचार करके कुछ बदलाव ला सके। धन्यवाद!!)

Tuesday 5 September 2017

जब सभी धर्मों और सम्प्रदायों में गुरुदेव के आदेश का पालन होता है, तो अपने सम्प्रदाय में क्यों नहीं? भाग 01. (भाग 02 जल्द प्रसारित होगा।)

आज मुझे अनायास ही कबीर दास जी का गुरुदेव की महिमा का गुणगान करते हुए लिखा गया दोहा याद आ गया। जो कुछ इस प्रकार हैं...
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, का के लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोविंद दियो मिलाय।।"

मैं यू ही बैठा-बैठा सोच रहा था कि मुझे कुछ पुराने दिन याद आ गए। जब मैं विद्याध्ययन करता था। तब गुरुजनों का हम कितना सम्मान करते थे? सुबह विद्यालय जाते ही उनके चरण स्पर्श करके नमस्ते बोलते थे और वे हमें आशीर्वाद स्वरूप कुछ शब्द कहते थे। जैसे कि खुश रहो, अच्छा पढ़ों आदि और हम इतना खुश होते थे कि उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।

पर यह सब अनायास ही एक सपने जैसा लगने लगा और जब मैं उस सपने से वापस वर्तमान की ओर अग्रसर हुआ तो अचानक मुझे कुछ अटपटा-सा महसूस हुआ। क्योंकि आजकल वह सब नहीं होता, जो हमारे जमाने में होता था। अब गुरुओं को वह सम्मान नहीं मिलता, जो हमारे जमाने में मिलता था।

आज मैं अपने समाज या सम्प्रदाय के बारे में बात करु तो अपने सम्प्रदाय में भी यह सत्य साबित होता है। हमारे वर्धमान श्रमण संघ सम्प्रदाय के गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. है। जो कि एक ऐसे संत है, जिनको आचार्य श्री शिवमुनि जी म. सा. भी नमन करते है। जबकि अपने समाज की परंपरा रही है कि आचार्य श्री को महामंत्री नमन करते है। पर इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि आचार्य श्री ने महामंत्री को नमन किया हो और इस अमूल्य घड़ी का गवाह बना "कड़ियाँ गांव"। जहा इन दो अमृत धाराओं का मिलन हुआ।

उस घड़ी की मैं व्याख्या नहीं कर सकता। क्योंकि उस घड़ी को शब्दों में बाँधने की ताकत मेरी कलम में नहीं है। बस मैं इतना कह सकता हूँ कि उस अप्रतिम क्षण के समय वहां उपस्थित ज्यादातर गुरुभक्तों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। जैसे कोई ज्वार ही आ गया हो। हमारे सम्प्रदाय के महान गुरुदेव श्री अम्बालाल जी म. सा. ने हमें एक ऐसा रत्न दिया। जिसे इतिहास युगों-युगों तक भूल नहीं पाएगा।

लेकिन आज मैं यहां गुरुदेव के बारे में बताने की जरूरत नहीं समझता, क्योंकि गुरुदेव को और उनके गुणों को सब जानते है। बल्कि मैं आज बात करने जा रहा हूँ कि... गुरुदेव को तो हम सभी जानते है, पर क्या हम अपने आप को जानते है?
क्या हम अपने व्यवहार को जानते है?
क्या हम सही मायनों में गुरु-आज्ञा का पालन कर रहे है?
क्या हम ऐसा कोई कार्य तो नहीं कर रहे, जिससे अनजाने में ही सही, पर गुरुदेव की अवहेलना हो रही हो?

(एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर, दोनों आंखों को बंद करने के बाद गुरुदेव की तस्वीर को अपने मन की आंखों से देखर सोचो कि क्या इन सभी सवालों के जवाब आपको संतोषप्रद लग रहे है?)

यह एक बहुत बड़ा सवाल है आज हमारे लिए। क्योंकि मुझे इस मुद्दे पर खोज के बाद जो जानकारी मिली। वो बेहद चौकाने वाली है। इस जानकारी से मुझे तो कुछ शर्म भी महसूस हुई। जो शायद आपको भी होगी।

मुझे इस बारे में जानकारी मिली कि गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. के आदेशों का पालन कुछ जगह तो बहुत हो रहा है, पर कुछ जगह बिल्कुल भी नहीं हो रहा है। जहां हो रहा है, वहा खुशी की बात है। लेकिन जहां नहीं हो रहा है, वहां यह काफी सोचनीय है। क्योंकि जहा-जहा समाज में कुछ बदलाव या संस्कारों (मर्यादाओं) की बात आती है, वहां गुरुदेव के आदेशों का उलंगन हो रहा है। जो काफी गंभीर समस्या है।

एक तरफ तो आज के श्रावक गुरुदेव के पीछे उनके साएं की तरह चलते है और दूसरी तरफ उन्ही के आदेशों की अवहेलना करने से नहीं चूकते।

कबीर ने एक ओर दोहे के माध्यम से गुरु की महिमा का वर्णन किया है कि...
"यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।"

(इस मुद्दे पर कुछ विचार और जानकारियां भाग 02 में प्रसारित करूँगा। जो जल्द ही आपके पास होगा। बस कुछ ही समय में...)

(आप में से किसी भी महानुभव को मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मैं माफी चाहता हूँ। इस मुद्दे पर आपके विचारों का मैं सहर्ष स्वागत करता हूँ। आप अपने विचार मुझे मेरे व्हाट्सएप्प नंबर +91-9819715012 पर भेज सकते है।)

जय जिनेन्द्र! जैनम जयति शासनं!!

(आपसे सविनय नम्र निवेदन है कि आप इस मैसेज को अपने सभी जैन ग्रुप्स और लोगों को बिना किसी कांट-छाँट के भेजे, ताकि समाज इस मुद्दे पर विचार करके कुछ बदलाव ला सके। धन्यवाद!!)