Wednesday 4 November 2020

भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं...!

1883 की एक घटना है। हेनरी नाम के एक शख्स ने अपनी महिला मित्र से बहुत लंबा रिश्ता अचानक किसी बात पर तोड़ दिया। इससे आहत होकर उस लड़की ने आत्महत्या कर अपना जीवन खत्म कर दिया। उस लड़की की मौत का उसके भाई को गहरा सदमा लगा और उसने यह सोच लिया कि, वह हेनरी को गोली मार देगा।

कुछ समय बाद उस लड़की के भाई को मौका मिल गया और उसने हेनरी को निशाना लगाकर गोली चला दी। अब हेनरी की किस्मत अच्छी थी, जो वह गोली हेनरी को छूकर निकल गयी और आगे एक पेड़ के तने में घुस गई। वह पेड़ हेनरी के अपने घर के अंदर बने बगीचे में था।

इस घटना के बाद उस लड़की के भाई ने हताश होकर खुद भी आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसने सोचा कि, हेनरी मर चुका है और यह मामला खत्म-सा हो गया।

अब इसे ईश्वर का चमत्कार कहे या कर्म का फल...! पर आगे की घटना बड़ी ही आश्चर्यजनक थी।

कुछ सालों बाद हेनरी को किसी कारण से वही पेड़ काटने की जरूरत पड़ी, जिसमें वह गोली घुसी थी। हेनरी ने पेड़ काटने की मशीन से उस पेड़ को काटने की कोशिश की, पर वह पेड़ कटा ही नहीं। क्योंकि वह पेड़ बहुत मोटा था। बहुत कोशिश के बाद भी जब पेड़ नहीं कटा, तो हेनरी ने निश्चय किया कि, पेड़ को डायनेमिक ने उड़ा दिया जाएं और हेनरी ने ऐसा ही किया। पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था।

जैसे ही डायनेमिक से पेड़ को उड़ाया गया। वैसे ही उस पेड़ में घुसी गोली तेजी से निकली और सीधी हेनरी के सीने में जाकर लगी। गोली की गति बंदूक से निकली हो, इतनी ही तेज थी। जिसने कि, इतने सालों बाद हेनरी को मार दिया।

Tuesday 3 November 2020

एक मैच ऐसा भी...!

 मुझे अपने विद्यालय के मैदान में हो रहे फुटबॉल मैच को देखने की जिज्ञासा हुई, तो मैं वहा साईकल से पहुंच गया। मैंने साईकल को नियत स्थान पर खड़ा किया और दर्शक दीर्घा में खाली पड़ी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। क्योंकि मैं अभी-अभी आया था, तो मैंने अपने पास बैठे एक लडके से मैच का स्कोर जानने के लिए पूछा, "अभी स्कोर क्या है?"

बड़ी ही मनमोहक मुस्कान के साथ उसने बताया, "सामने वाली टीम हम से 3-0 से आगे हैं।"

मैं उसका चेहरा देखकर आश्चर्यचकित रह गया। मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया, "वास्तव में...!"

फिर मैंने अपने आप को संभालते हुए उससे कहा, "मेरा मतलब है कि, हम पीछे है और आपके चेहरे पर मुस्कान है। आप बिलकुल भी निराश नहीं लग रहे। जबकि हमारे जितने के चांस भी बहुत कम ही है।"

उस लड़के ने बड़ी ही हैरानी के साथ मुझे देखा और एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोला, "जब रेफरी ने अंतिम सीटी नहीं दी है, तो मुझे अभी से हतोत्साहित क्यों होना चाहिए? मुझे हमारी टीम के साथियों और प्रबंधक मंडल पर पूरा भरोसा है। हम निश्चित रूप से जीत जाएंगे।"

कुछ समय निकला ही था कि, रेफरी ने सच में घोषणा कर दी। वह मैच हम जीत चुके थे और वह भी 5-4 के स्कोर के साथ...!

जैसे ही घोषणा सुनी, वह लड़का धीरे से मेरे चेहरे को देखकर मुस्कुराया। मैं उसकी मुस्कुराहट से चकित था, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। ऐसा आत्मविश्वास...!

जैसे ही उस रात मैं सोने के लिए अपने बिस्तर पर गया, मेरी नींद उड़ चुकी थी। मेरे मन में कुछ विचार रह-रहकर आ रहे थे। उस लड़के का वह मुस्कुराता चेहरा मेरे सामने घूम रहा था। उसका वही आश्चर्यजनक जवाब मेरे सामने घूम रहा था कि, "जब रेफरी ने अंतिम सीटी नहीं दी है, तो मुझे अभी से हतोत्साहित क्यों होना चाहिए? मुझे हमारी टीम के साथियों और प्रबंधक मंडल पर पूरा भरोसा है। हम निश्चित रूप से जीत जाएंगे।"

और अचानक मेरे मन में आया... जीवन भी तो एक खेल की तरह ही है...! फिर क्यों हम छोटी-सी असफलता मिलने पर हतोत्साहित हो जाते है? जबकि हमारा जीवन अभी बाकी है। ईश्वर रूपी उस रेफरी ने अंतिम सिटी बजाई ही नहीं, तो हमें उदास होने की जरूरत ही नहीं है। क्या पता, आने वाले समय में जीवन का मैच हम ही जीत जाएं...!

शिक्षा: "सच तो यह है कि, बहुत से लोग खुद ही अंतिम सीटी बजा लेते हैं...! लेकिन जब तक जीवन है, कुछ भी असंभव नहीं है और ना ही कुछ करने के लिए देरी हो गयी है। आपका गुजरा जीवन, आपका भविष्य कभी नहीं हो सकता। आप खुद से ही खुद के लिए अंतिम सिटी मत बजाइये।"