Tuesday 30 April 2019

जैन: विलुप्ति की कगार पर खड़ी एक सभ्य और सुसंस्कृत मानव सभ्यता.

हाथ से फिसलते संस्कार, रेत की तरह सने-सने...!⏳
(संस्कारों को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक छोटा सा कदम, जिसे दौड़ आप ही बनाएंगे।) भाग 01.

(एक ऐसा सफर, जो हमें "अहिंसा परमो धर्म" से "हिंसा परमो धर्म" की ओर ले जा रहा है और हमें पता ही नहीं...! क्योंकि हम एक-दूसरे को बेवकूफ समझ रहे है।)

जीव जगत और प्रकृति का रिश्ता बहुत पुराना और शुरू से ही घनिष्ठ रहा है। क्योंकि यह दोनों एक-दूसरे के पूरक है। जीव जगत अपनी हर आवश्यकता के लिए प्रकृति पर निर्भर है और प्रकृति अपना हर उपहार जीव जगत को सौंप देती है और यही अविरल चलने वाला सिलसिला ही दुनिया को बनाएं हुए है।

जीव जगत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है मानव और उसकी सभ्यता। मानव, प्रकृति द्वारा जीव जगत को दिया सबसे अनमोल तोहफा है। मानव को प्रकृति ने लगभग सबसे अंत में बनाया, लेकिन सबसे ज्यादा योग्यताओं से नवाजा भी और इन योग्यताओं का मानव ने बखूबी इस्तेमाल भी किया है। आज मानव ने अपने बल पर दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है। मानव ने न सिर्फ अपना विकास किया, बल्कि दुनिया को भी बहुत आगे ले गया है। आज हम जो आधुनिक दुनिया देख रहे है, यह सब मानव की कल्पना का ही परिणाम है।

कहते है न कि आधुनिकता अच्छी बात है। पर इस आधुनिकता के चलते प्रकृति के साथ छेड़छाड़ सबके लिए पतन का कारण बनती है। मानव ने दुनिया को अपनी कल्पनाशक्ति से बहुत आगे तक ले जाने में सफलता अर्जित की है, पर उसके साथ ही उसने प्रकृति और उसके नियमों की अनदेखी भी की है। इससे प्रकृति का जो चक्र था, वह एक तरह से टूट-सा गया है। जिससे प्रकृति का रिश्ता मानव के साथ-साथ समस्त जीव जगत से ही टूटता-सा प्रतीत हो रहा है और जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो शायद बहुत देर हो चुकी होगी और आने वाले कुछ ही सालों में जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल हो जाएगा।

आज मानव को छोड़ दे तो बाकी के समस्त जीव जगत ने प्रकृति के जीवन चक्र को तोड़ने में अपना 0% योगदान ही दिया है। मतलब मानव का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 100% योगदान है और इसी का परिणाम यह हुआ कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त कई अनमोल उपहार विलुप्त हो चुके है, जो शायद हम या हमारी आने वाली पीढियां उन्हें कभी नहीं देख पाएंगे। ऐसे बहुत से उपहार है, लेकिन आज मैं एक ऐसे प्राकृतिक उपहार की बात करूंगा, जो आपको अंदर तक हिला देगा। जो अब शायद बहुत ही कम बचा है....!

और वह है.... जैन सभ्यता...!

हां, आपने एकदम सही पढ़ा। एक ऐसा प्राणी, जिसे दुनिया में सबसे शांत प्रवृत्ति का और सबसे सभ्य माना जाता था। पर बड़े अफसोस की बात है कि अब यह विलुप्तप्रायः की श्रेणी से भी निकल चुका है और पूरी तरह विलुप्ति की कगार पर खड़ा है। बस यह प्राणी कुछ ही संख्या में बचा है और जिस तरह का माहौल दिख रहा है, उस हिसाब से तो बहुत कम समय में ही यह दुनिया से पूरी तरह विलुप्त हो जाएगा।

अब मैं आपकी मनोस्थिति को समझ सकता हूँ और आपके मन में वर्तमान में चल रहे विचारों और सवालों को भी अच्छी तरह समझ पा रहा हूँ। आप यही सोच रहे है ना कि दुनिया में जैनियों की इतनी जनसंख्या है। फिर यह विलुप्तप्रायः कैसे हो सकता है? तो आपके मन में चल रहे इस सवाल के जवाब को और मेरे द्वारा लिखें इस लेख को समझने के लिए कुछ बातें समझना बेहद जरूरी है। जो शायद आप भी जानते है।

सबसे पहला सवाल आता है कि दुनिया में जैनियों की इतनी संख्या होने के बावजूद यह विलुप्तप्रायः कैसे? तो इसके लिए हमें सबसे पहले जैन की परिभाषा समझनी होगी और साथ ही क्या हम सही मायनों में जैन है? यह भी सोचना होगा।

भगवान महावीर द्वारा बताएं मार्ग पर चलकर पांच महाव्रतों का पलन करने वाला ही सही मायनों में जैन कहलाता है। क्योंकि जैन जन्म से नहीं, कर्म से बना जाता है और अगर ऐसा नहीं होता तो महावीर स्वामी या बाकी के 23 तीर्थंकर पूजनीय नहीं होते। उन्हें जैन कभी भी नहीं पूजते। क्योंकि 24 के 24 तीर्थंकर जन्म से जैन थे ही नहीं, वह तो क्षत्रिय थे, राजकुमार थे। पर उन्होंने अपने कर्मों के आधार पर जीवन को क्षत्रिय से जैन बना लिया और अपने जीवन के साथ ही साथ अपने कुल-वंश के नाम को भी अमर बना लिया। वह मोक्षगामी बनें और आज भी महाविदेह क्षेत्र में ध्यानमग्न विराजमान है।

पर आज ऐसा नहीं है। आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम सब जैन कुल में जन्म लेने के बाद भी जैन नहीं बन पा रहे है। 24 तीर्थंकर क्षत्रिय से जैन बने थे और हम जैन से क्षत्रिय बन रहे है। 24 तीर्थंकर क्षत्रिय से सच्चे और अच्छे जैन बने थे और हम जैन से सच्चे और अच्छे क्षत्रिय भी नहीं बन पा रहे है। मतलब हम ना ही सही मायनों में जैन बन पाए है और ना ही क्षत्रिय।

वैसे तो आजकल आधुनिकता के नाम पर जैन सिद्धांतों के खिलाफ बहुत कुछ हो रहा है। पर कुछ बातें तो ऐसी हो रही है, जिनका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमें कुछ भी फायदा नहीं है। फिर हम यह सब क्यों करते है? यह आज तक मुझे समझ नहीं आया।

आजकल शादियों में एक नई तरह की आधुनिकता और बड़ी ही अजीब स्थिति देखने को मिल जाएगी, जो कुछ सालों पहले बिल्कुल नहीं थी। अभी कुछ ही सालों से यह शुरू हुआ है। जो आपने भी महसूस किया होगा।

आजकल शादियों में घोड़े के साथ एक छोटा लड़का आता है और वह बिन्दोली आदि में घोड़े के ऊपर खड़ा होकर नाचता है, घोड़े के पैरों में से निकलता है, घोड़े के एक पैर के नीचे सोता है और घोड़े की पूछ से ऐसे लटकता है, जैसे रस्सी से लटकता हो। यह ऐसे करतब दिखाकर लोगों के आकर्षण का केंद्र बनने का प्रयत्न करता है।

मैं भी अभी कुछ दिन पहले अपने एक रिश्तेदार की शादी में गया था। यह नजारा मैंने वही पर देखा। एक छोटा लड़का घोड़े के ऊपर चढ़कर नाच रहा था, कुछ देर बाद वह घोड़े के अगले एक पाँव के नीचे सो कर करतब दिखाने लगा। यहां तक तो ठीक था। क्योंकि यहां तक घोड़े को कोई तकलीफ महसूस होती मुझे नहीं दिखी। पर जैसे ही वह लड़का घोड़े की पूँछ को रस्सी की तरह बनाकर जैसे ही उसके सहारे घोड़े के नीचे लटका, मेरा दिल अचानक से मचल गया। ऐसे लगा, मानों वह लड़का घोड़े की पूँछ से नहीं, बल्कि मेरी पूँछ से लटक रहा हो और मुझे अपने अंदर ऐसा दर्द महसूस हुआ कि मेरा पूरा शरीर ही कांप गया। ऐसे लगा, जैसे मानों घोड़ा जोर से रोते हुए चीख कर गिड़गिड़ा रहा हो कि, "छोड़ दो मुझे। मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मैं मर जाऊंगा।" पर कुछ ही समय में मुझे होश आया कि बिचारा यह बेजुबान और गुलाम जानवर तो अपनी संवेदनाएं भी व्यक्त नहीं कर सकता। क्योंकि यह प्रकृति की सबसे अनमोल कृति के हाथों की कठपुतली है और अनायास ही मेरा दिल अंदर ही अंदर रो पड़ा और ऐसे रोने लगा कि उसको सूद ही नहीं रही कि वह घोड़े का नहीं, मेरा दिल है।

इस नजारे के बाद मेरे अंदर दुःख था, शादी की खुशियां तो जैसे मुरझा ही गयी थी। पर दुःख से ज्यादा मेरे अंदर गुस्सा था और यह गुस्सा उस घोड़े वाले या उसके किसी परिवार के सदस्य के प्रति नहीं था। यह गुस्सा था जैन समाज के उन बड़े-बड़े पदों पर बैठे राजनीतिज्ञों के प्रति, जिनको सिर्फ पद पर बैठकर राजनीति करनी है। यह गुस्सा था जैन समाज के उन समाजसेवकों के प्रति, जिनको समाज ने पदको से नवाज दिया, उनको अपने नाम और फ़ोटो के आगे उस जानवर का दर्द नहीं दिख रहा क्या? यह गुस्सा था जैन समाज के उन साधु-संतों के प्रति, जिनको यह सब पता भी नहीं है कि उनके चहेते भक्त उस बेजुबां जानवर के प्रति कितनी निर्दयता कर रहे है? यह गुस्सा था, जैन समाज के उस तबके के प्रति, जो चाह कर भी कुछ नियम बनाकर ऐसी अहिंसक गतिविधियों पर सदा के लिए पाबंदी नहीं लगा रहा।

मेरी कुछ बातें बहुत से लोगों को कड़वी भी लगेगी और उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली भी लगेगी। कुछ लोग मुझ पर गुस्सा भी करेंगे। मुझे डराएंगे-धमकाएँगे भी। लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हम जैसे समाज के बहुत अदने से श्रावकों को इस पर गुस्सा होना पड़ता है, क्योंकि जो ऐसी गतिविधियों पर पाबंदी लगा सकते है, उनको राजनीति करने से फुरसत नहीं है। मैं कहता हूँ, आप राजनीति करें। क्योंकि आप ऐसा कर सकते है। पर कुछ तो अपने पद का सही उपयोग भी कर ले, कुछ तो सही राजनीति भी कर लें। कुछ तो उस महावीर की सुनी बातों को समाज में चला ले। क्योंकि आप ऐसा कर सकते है। यदि आप राजनीति कर सकते है और कर रहे है। तो क्या ऐसे अत्याचारों को आप नहीं रोक सकते? और यदि रोक सकते है, तो रोककर दिखाओ न....! कायरों की तरह क्यों सिर्फ देखकर मुँह मोड़ लेते हो।

मेरे उन सभी समाजसेवकों, गुरुभक्तों और प्रतिष्ठित पदासीन व्यक्तियों से कुछ सवाल...! (जिनका जवाब मुझे नहीं दे, पर अपने अंतर्मन में समझ ले, बड़ी ही ईमानदारी के साथ। क्योंकि अंतर्मन न ही कभी झूठ बोलता है और न ही कभी गलत बोलता है।)...
Q. 01. क्या यह उस गुलाम घोड़े के साथ ज्यादती या अत्याचार नहीं है?
Q. 02. क्या हमें नहीं लगता कि उस घोड़े के मुँह में लगाम लगाकर उसके साथ कुछ भी किया जा रहा है? क्योंकि वह कुछ नहीं कर सकता।
Q. 03. हम उस घोड़े की लगाम निकालकर उसके साथ ऐसा करें तो क्या वह ऐसा होने देगा?
Q. 04. क्या यह एक जीव (जानवर) के साथ हिंसा नहीं कहलाएगी?
Q. 05. क्या यह कृत्य किसी लड़की को रस्सियों से बांधकर जबरदस्ती बलात्कार करने के समान नहीं है?

(अब कुछ प्रतिभाशाली या समझदार व्यक्तित्व के धनी ऐसा भी कह सकते है कि यह सब तो वह घोड़े वाला कर रहा है। हमारा इससे क्या लेना-देना? तो मैं आपको बता दु कि यह सब प्रत्यक्ष रूप से तो वह घोड़े वाला कर रहा है, पर परोक्ष रूप से यह हम ही करवा रहे है। कभी विचार करना, समझ में आ जायेगा।)

वर्तमान का सबसे बड़ा सवाल...
कही हम अहिंसा की आड़ में दिन-प्रतिदिन हिंसात्मक गतिविधियों से तो नहीं जुड़ रहे या हिंसात्मक तो नहीं बन रहे? क्योंकि आधुनिकता अच्छी बात है, समय के साथ चलना अच्छी बात है। पर कही इन सबकी आड़ में हम शाश्वत सत्य को नकार तो नहीं रहे? जाने-अनजाने कही अपने ही धर्म की अवहेलना कर अपने हाथों, अपनी ही सभ्यता को नष्ट तो नहीं कर रहे?

अंत में मेरी आप सभी प्रभुद्धजनों से हाथ जोड़कर यही विनती है कि हम इस सभ्य और सुसंस्कृत सभ्यता को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील हो, हम हमारी आने वाली पीढ़ी को ऐसे संस्कारों से सुसज्जित करें कि इस सभ्यता को बढ़ाया जा सके और दुनियां को एक संदेश दिया जा सके और वह संदेश होगा... समता का...! संयम का...!! मोक्ष का...!!!

धन्यवाद! जय जिनेन्द्र...!

(अगर आप इस लेख को पढ़ने के बाद मुझ पर गुस्सा है, तो इसमें आपकी थोड़ी भी गलती नहीं है। क्योंकि आपने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया, तो यह स्वाभाविक ही है और अगर आपको लगता है कि यह एक सटीक सच्चाई है और ऐसे कुकृत्यों का जैन समाज में कोई स्थान नहीं, तो मेरा आपसे निवेदन है कि आप इसे अपने हर समूह और संपर्क नंबर को शेयर करें और इसका लिंक अपने स्टेटस पर जरूर लगाएं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हो सके। साथ ही आप अपने स्तर पर हर जगह ऐसे कुकृत्यों का विरोध करें। ताकि समाज से इन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में मदद मिल सकें।)

(मुझे पता है कि मेरा यह एक छोटा-सा लेख न ही आपकी सोच बदल सकता है, न ही आपकी आँखें खोल सकता है और न ही समाज में कोई बदलाव ला सकता है। क्योंकि जो बदलाव कर सकते है, उन्हें बदलाव करना ही नहीं है और जिन्हें बदलाव करना है, वह बदलाव कर ही नहीं सकते। पर मैं समाजहित और समाजसुधार के लिए मेरी कलम को धार देता रहूंगा, अविरल....!!!)

Friday 26 April 2019

तो क्या इसलिए, चौकीदार चोर है...?👮

डर है कि कही पोतियां न खुल जाएं,
लोगों को राजनीति का गंदा खेल न मिल जाएं,
उनका लक्ष्य है मोदी रोको...
क्योंकि मोदी का लक्ष्य ही है, गद्दारों को ठोको।

तो क्या इसलिए, चौकीदार चोर है...?👮

उसने गरीबी नहीं, गरीबों को मिटाया,
अपने ही देश का धन, विदेशों को लुटाया,
उनका लक्ष्य है देश रोको...
क्योंकि मोदी का लक्ष्य ही है जयचंदो को झोंको।

तो क्या इसलिए, चौकीदार चोर है...?👮

भारतीय सेना को भी तड़पाया,
राफेल लड़ाकू विमान पर बहुत फड़फड़ाया,
उनका लक्ष्य है सेना रोको...
क्योंकि मोदी का लक्ष्य ही है इनके घोंपो।

तो क्या इसलिए, चौकीदार चोर है...?👮

2019 लोकसभा का सितारा है मोदी,
जन जन का प्यारा और दुलारा है मोदी,
हमारा लक्ष्य है पप्पू रोको...
क्योंकि मोदी का लक्ष्य ही है देश बनाना मोटो।

तो क्या इसलिए, चौकीदार चोर है...?👮