Wednesday 21 July 2021

कूटनीति और राजनीति का एक अप्रतिम उदाहरण पेश किया है, नरेंद्र मोदी जी ने.

04 जून, 2016 को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफ़ग़ानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अमीर अमानुल्लाह खान अवार्ड" के लिए आर्यवर्त के प्रधानसेवक नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नाम की घोषणा की, तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ। पर अब उससे भी बड़ा आश्चर्यजनक काम हुआ है।

उस सर्वोच्च नागरिक सम्मान अवार्ड का फर्ज और मित्रता का कर्ज अभी तीन रात पहले उतार दिया है, नरेंद्र मोदी जी ने... जब हम सो रहे थे!

विश्व के सबसे बड़े दो सैन्य विमान हरक्यूलिस-130, हथियार, गोला-बारूद व अन्य तकनीकी उपकरणों के साथ अफगानिस्तान में काबुल सैन्य एयरपोर्ट पर उतार दिए गए है और इसके साथ ही अफगान आर्मी के हाथ असरफ गनी के मित्र मोदी ने मजबूत कर दिए है।

एकाएक अमेरिका की फ़ौज के अफगानिस्तान से हटने के बाद से ही अंदरूनी तरीके से आर्यवर्त, जम्बूद्वीप से खंडित हिन्दू भुजा अफगानिस्तान में अपनी दखल बढ़ाने की ओर बढ़ गया था। यह एक गहरी रणनीति के तहत किया गया है और इसके शीर्ष क्रम में नरेंद्र मोदी की चाणक्य नीति काम कर रही है।

लगभग गुप्त रूप से अफगान आर्मी को आर्यवर्त की ओर से सैन्य मदद मुहैया कराई जा रही है और इसके साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान पर कमरतोड़ हमले तेज कर दिए गए है।

आर्यवर्त को पूर्ण हिन्दूराष्ट्र बनाने से पहले मोदी अपने सभी पड़ोसी देशों पर अपना संतुलन स्थापित करने का काम शुरू कर चुके है और अब वो इस अवसर को भी हथिया चुके है कि, अफगानिस्तान में आर्यवर्त अपनी योजनाओं की रक्षा के लिए सैन्य शक्ति को स्थानीय लोगों की रजामंदी से स्थापित करने के लिए तैयार हो गया है।

पर्दे के पीछे मोदी ने बहुत साहस भरा दांव खेला है। जो कि, अगले एक पखवाड़े के बाद उजागर होगा। तब तक तालिबान व अफगानिस्तान, दोनों ही ओर से मोदी के मन-मुताबिक समझौते पर आने की रुपरेखा रच दी जा सकती है।

आर्यवर्त में संसद का मानसून सत्र शुरू हो गया है और इसके पहले ही आर्यवर्त ने अफगानिस्तान से मिले हुए सर्वोच्च नागरिक सम्मान अवार्ड की मित्रता का फर्ज अदा कर दिया है।

मोदी गुजराती है और व्यवहार व व्यापार के मामले में गुजराती से बड़ा कूटनीतिक खिलाड़ी और कोई नहीं है।

पहले अमेरिकन फ़ौज के समय आर्यवर्त ने अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं को प्रारंभ किया और अमेरिकन फ़ौज के अफगानिस्तान से जाते ही अपनी परियोजनाओं की रक्षा करने की आड़ में अफगान सरकार की सहायता के लिए सैन्य शक्ति का साथ देने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

अफगानिस्तान के हालात अब लगभग मोदी की चाणक्य नीति पर निर्भर हो गए है। अब संसद मानसून सत्र में मोदी कई ऐतिहासिक दृष्टि के विधेयक पेश करेंगे।

[मुझे अनायास ही मोदी जी के विदेशी दौरों के बाद हुए चाबहार बंदरगाह (आपको बता दु कि, यह बंदरगाह ईरान और पाकिस्तान के बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित है। जो समीकरण की दृष्टि से आर्यवर्त के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण है और इसे चीन के मुँह से निवाला छिनने जैसा कहा है।) समझौते की याद आ गयी। जो नरेंद्र मोदी जी की कूटनीति का एक अप्रतिम उदाहरण था। जिसे इतिहास कभी नहीं भुला सकता है।]

(नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का यह एक और कदम हिन्दूराष्ट्र की ओर अग्रसर हो चुका है।)

जय हिंद...!🙏🚩