Friday 19 February 2016

जैन धर्म में एकता की स्थिति...

   भगवान् महावीर स्वामी ने एकता पर जोर दिया था। भगवन् ने फ़रमाया है कि बिना भेदभाव के सभी जीवों से प्यार करो। एकता में बहुत ताकत होती है। एकता की ताकत से बड़ी से बड़ी परिस्थितियों से निपटा जा सकता है। ये वो शक्ति है, जिससे निर्बल भी सबल बन जाता है।
  
   आजकल अपने जैन धर्म में एकता की कमी देखी जा सकती है। इसका सबसे अच्छा और सटीक उदाहरण है... जैन धर्म में पर्युषण महापर्व और संवत्सरी का अलग-अलग होना। जैन धर्म में संवत्सरी तीन होती है। श्वेताम्बर में दो और दिगंबर में एक। आपने कभी किसी और धर्म में एक त्यौहार को अलग-अलग मनाते देखा है क्या???

   हिन्दू धर्म में दीवाली, होली, राखी, मुस्लिम धर्म की ईद, ईसाई धर्म में क्रिसमस आदि ऐसे कई उदाहरण है जो अपने धर्म की एकता के बहुत ही बड़े उदाहरण है।

   क्या आपने इन धर्मों में एक त्यौहार को अलग-अलग मनाते देखा है???

   नहीं ना। तो फिर हमारे जैन धर्म में ही ऐसा क्यों होता है कि जो पर्व साथ में मिलकर मनाना चाहिए, वो हम अपने हिसाब से अलग-अलग मनाते है।

   कुछ समय पहले मैंने इस विषय पर एक जैन मुनि जी से विचार-विमर्श किया था। जिनका यहाँ नाम लेना में उचित नहीं समझता। इसलिए उनका नाम तो नहीं लूंगा, पर जो उन्होंने मुझे बताया। वो जरूर आपको बताना चाहूँगा।

   मैंने जैन एकता विषय पर मेरे कुछ विचार उनके साथ साजा करते हुए कहा कि ये महापर्व जब से शुरू हुआ, तब से तो अलग-अलग नहीं मनाया जाता रहा है। फिर ये अलग कैसे हुआ? कोई तो इसका कारण रहा होगा, जो मुझे नहीं पता। आप मुझे इस विषय को अपने विचारो से समझाए।

   तो उन्होंने बहुत ही सुन्दर उदाहरण से मुझे समझाते हुए कहा कि एक पिता की चार संतान होती है। जब तक ये चार संतान बड़ी नहीं हो जाती, तब तक तो एक परिवार में ही रहती है। मतलब वो एक परिवार कहलाता है। पर जब ये ही चार संतान बड़ी हो जाती है, तो उनकी भी संताने हो जाती है और उनके चार अलग-अलग परिवार बन जाते है। अब समय के साथ ये चार संतान अपने पिता की जो भी संपत्ति होती है उनका भी चार हिस्सों में विभाजन कर लेती है और इस तरह एक ही संपत्ति और परिवार के चार हिस्से हो जाते है। ठीक इसी प्रकार अपने जैन धर्म में भी हुआ है।

   मुझे बात तो समझ में आ गयी और ख़ुशी भी थी कि जो आज तक मुझे नहीं पता था। उसका ज्ञान मुझे मुनि श्री के आशीर्वाद से प्राप्त हो गया। परंतु मुझे उस विभाजन का दुःख भी है, जो हम आज तक देख रहे है और ना जाने कितनी पीढियां इस विभाजन को यु ही देखती रहेगी।

   इस बात को समझने के बाद मैंने मुनि श्री से एक और सवाल पूंछा कि क्या अपने जैन धर्म में ऐसा कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हुआ, जिसने इस ओर सबका ध्यान आकर्षित किया हो या कोई बड़े मुनि जी भी तो इस विभाजन को एक कर सकते थे। तो आज तक ऐसा क्यों नहीं हुआ?

   तो उन्होंने मुझे मेरी असमंजस की स्थिति से बाहर निकालते हुए समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं है। एक नहीं, ऐसे कई सामाजिक कार्यकर्त्ता हुए है, जिन्होंने इस विषय पर काफी अध्ययन किया, समारोह किये, बहुत प्रयास भी किये। हमारे मुनियों ने भी कई सभाएं की, आपस में मिलकर बहुत प्रयास किए। पर उसका रिजल्ट कुछ भी नहीं निकला। आज तक प्रयास चल रहे है, पर इसका अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं निकला है। भविष्य में आसार के बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

   हर धर्म में धार्मिक लोग भी होते है और अधार्मिक लोग भी होते है। अच्छाई और बुराई तो संसार का नियम है। जब भगवान का अवतार हुआ, तब भी अच्छाई और बुराई इस दुनिया में विद्यमान थी, आज भी विद्यमान है और आने वाले समय में भी विद्यमान रहेगी। इसे जड़ से कोई भी नहीं उखाड़ सकता।

   हर धर्म के टुकड़े हुए है। ये आप सब भी मानते है और मै भी मानता हूँ। पर इसका ये मतलब नहीं है कि त्यौहारों और पर्वो के भी टुकड़े कर दिए जाए। ये टुकड़े धर्म को विभाजित ही करते है और धर्म के विभाजन से ही मानव जाति विभाजित हुई है।

   आपने कभी किसी जानवर को विभाजित देखा है?

   नहीं ना। तो कभी ये सोचो कि विभाजन हमेशा मानव जाति में ही क्यों होता है? बाकि किसी प्राणियों में तो विभाजन के लिए इतना संघर्ष नहीं होता। मानव जाति के आलावा किसी जाति में अगर विभाजन हुआ भी होगा तो वो उनकी मानसिकता के कारण नहीं अपितु प्राकृतिक कारण से हुआ होगा। आपको यकीन नहीं हो तो एक बार इतिहास पढ़ लो। पता चल जायेगा।

   जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि अच्छाई और बुराई प्रकृति का नियम है। उसी तरह जैन धर्म में कई बुराइयों के बावजुद अच्छाइयों की भी कमी नहीं है। जैन धर्म में एकता की कमी के साथ कभी-कभी एकता स्थापित करने के प्रयास भी हुए है या यु कहे कि ऐसे मौके भी आये है, जब जैन धर्म में एकता की झलक देखने को मिली।

   ईसका ताज़ा उदाहरण: जैन धर्म की बहुत पुरानी "संथारा प्रथा" पर राजस्थान हाइकोर्ट ने बेन लगा दिया था। इसमें कोर्ट का आर्डर था कि जो भी संथारा ले और दे। दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया जाये। जिसमें सज़ा का प्रावधान भी था। हाइकोर्ट ने संथारा को आत्महत्या करार दिया था। जबकि आप सभी जानते है कि संथारा कोई आत्महत्या नहीं अपितु ये एक धर्म का हिस्सा है। इससे कई धार्मिक लाभ है, जो मानव जन्म की गति सुधारने के लिए एक धार्मिक कर्म है।

   इस हाइकोर्ट के फैसले के विरोध में पुरे भारत के जैन धर्म को एक अलग ही माला की डोर में पिरोये मोतियों की तरह देखा। यह पल एक अलग ही ख़ुशी देने वाला पल था। जिसको आज भी याद करता हूँ, तो गर्व से सर उठ जाता है। जैन होने पर अपने आप को खुशकिस्मत समझता हूँ। एक अलग ही एहसास होता है। 24 अगस्त, 2015 की वो जैनियों की अहिंसा रैली और भारत बंध की याद आज भी मेरे जहन में ताजा है। मैंने भी इस अहिंसा रैली में भाग लिया था।

   इसमें ओर ख़ुशी और गर्व की बात तो ये थी कि ये जुलुस जैन धर्मानुसार निकाले गए। अहिंसा के आधार पर निकाले गए। ना कही तोड़-फोड़, ना ही नारेबाजी और ना ही किसी सार्वजनिक व्यवस्था को अव्यवस्थिक किया, ना कोई माहोल ख़राब किया और इस मौन जुलुस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले पर बेन लगा दिया। इस तरह अहिंसा की जीत हुई और ये पूरी दुनिया ने देखा। इससे एक फायदा तो ये हुआ कि कोर्ट भी मान गयी कि जैन धर्म वाकई अहिंसा वादी धर्म है। दूसरा ये हुआ कि अपनी बात भी मनवा ली और देश की व्यवस्था में भी कोई खतरा नहीं बना जैन धर्म। इससे देश को भी कोई नुकसान नहीं हुआ। पहली बार पूरी दुनिया ने जैन धर्म की अहिंसा का लोहा माना। ये अपने आप में बहुत गर्व की बात है।

   अगर ऐसी एकता हर जगह बन जाये तो ये धर्म कही गुना आगे बढ़ सकता है और भारत देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान और कही ज्यादा दे सकता है और हम सब जब मिलकर प्रयास करेंगे तो अपने देश को विश्व-शक्ति बनने से कोई भी रोक नहीं सकता। अब इससे ज्यादा और क्या ख़ुशी की बात हो सकती है कि अपने योगदान से अपना देश तरक्की करे। आगे बढे और एक नयी अर्थव्यवस्था बनकर विश्व के सामने अपनी मिशाल कायम करे।

   मेरा आप सभी जैन भाइयो और बहनों से निवेदन है कि आप सब इस और थोडा ध्यान दे और जैन एकता स्थापित करने में अपना अमूल्य योगदान दे। अपनी आपसी रंजिसो को भूलकर हम सबको एक साथ, एक मंच पर खड़ा होना होगा। तालमेल के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ेगा। एक-दूसरे का सपोर्ट करना पड़ेगा। आपसी भेदभाव भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाना पड़ेगा और जब ये सब हो गया तो समझो अपना जीवन धन्य हो गया।

   मेरे इस आर्टिकल के लिखने की वजह ये है कि मेरी एक दिली तमन्ना है कि जैन धर्म का महापर्व पर्युषण और संवत्सरी एक हो जाये और सब जैन आपस में मिलकर बिना भेदभाव के रहे।

   मेरे विचार किसी को अच्छे और किसी को बुरे भी लगे होंगे। ये मेरे अपने विचार है। फिर भी किसी को कोई बात बुरी लगी हो तो मै उनसे माफी चाहता हूँ।
मन, वचन, काया से मिच्छामिदुक्कडम्!!!

।।जय जिनेन्द्र।। ।। जैनम् जयति शासनम्।।

Thursday 18 February 2016

भारत और पाकिस्तान में विभिन्नता...

   14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान आज़ाद हुआ और एक स्वतंत्र देश बन गया और इसके दूसरे दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को भारत देश को आज़ादी मिली और भारत भी एक स्वतंत्र देश बन गया। दोनों देशों की आज़ादी में सिर्फ एक दिन का फर्क है। आजतक लगभग 70 सालों में इन दोनों पडोसी देशों में कई बार युध्द भी हुए, प्राकृतिक आपदाएं भी आई। पर दोनों देशों ने सब परिस्थितियों का सामना बड़ी ही बहादुरी से किया। दोनों देशों के आपसी युद्ध में हमेशा भारत ने पाकिस्तान को शिकस्त दी है। पर इन युद्दों का रिजल्ट दोनों देशों को समान रूप से भरना पड़ा है। दोनों ही देशों ने अपना पैसा पानी की तरह इन युद्धों में बहाया है। जिससे दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है।

   आपको शायद पता होगा कि एक युद्ध लड़ने के लिए कई अरबो-खरबो रुपयो की जरुरत होती है। कई सैनिकों को अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए शहीद होना पड़ता है और युद्ध पूरा हो जाने के बाद दोनों देशों को मिलता क्या है??? खून-खराबा और बरबादी। इसके अलावा कुछ नहीं।

   जहा तक मेरा विचार है, इन युद्धों से दोनों देशों को खास कोई फायदा नहीं हुआ। ये युद्ध नहीं होकर, इनकी बजाय दोनों देश आपस में मिल-बैठकर रिजल्ट निकालते तो ज्यादा फायदा था। पर शायद समय की जरुरत थी, इसलिए ये युद्ध हुए।

   खेर उसे समय की जरुरत समझो या और कोई कारण। पर मै जो कहना चाहता हूँ। वो इन युद्धों से परे है, अलग है।

   अब मै बात करूँगा..... इन दोनों देशों के विकास की। जिसे वेसे तो पूरी दुनिया जानती है और मै भी कोई अलग बात नहीं करने वाला हूँ। पर मेरा मकसद आपको यह बताना है कि कुछ बातों में आज भी हम पाकिस्तान से या यु कहे कि पूरी दुनिया से पीछे है। (चाहे आप इस बात को मानो या ना मानो, लेकिन सत्य, सत्य ही है) उस दिशा में आज की केंद्र सरकार कार्य कर रही है। पर कुछ ऐसी बातें है, जिसे केंद्र सरकार चाहकर भी पूरा नहीं कर सकती। मेरा मतलब है कि उस दिशा में भारत देश की आम जनता को ही कदम उठाने पड़ेंगे। उसमें आप, मै या यु कहे कि हम सबको ही सोचना पड़ेगा। पहल करनी पड़ेगी। समझना पड़ेगा।

   अब मै आपको कुछ ऐसी बाते बता रहा हूँ, जिसे आप सब लगभग जानते है या नहीं भी जानते है तो जान ले। क्योंकि आखिर ये अपने देश का मामला जो है।

   आपको भी भारतीय होने पर गर्व होगा। मुझे भी है। सब कुछ सहते हुए भी भारत ने पिछले 70 सालों में अच्छा विकास किया है। अगर हम भारत के विकास की तुलना पाकिस्तान के विकास से करे तो हमें गर्व होगा। क्योंकि पिछले 70 सालों में पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा विकास भारत ने किया है। फिर वो चाहे आर्थिक हो, सामाजिक हो या राजनितिक। हर एक मामले में हम पाकिस्तान से आगे है। भारत ने ऐसे कई आविष्कार भी कर दिखाएँ, जो पूरी दुनिया ने सोचे भी नहीं थे। आज अमेरिका विश्व-शक्ति बन कर उभरा है। लेकिन अमेरिका की ज्यादातर बड़ी कम्पनीज में बड़े ओहदे पर भारतीय मूल के निवासी बैठे है। जो अपने आप में बहुत बड़े गर्व की बात है। भारत आज ज्यादातर प्रोडक्ट अपने यहाँ बना रहा है। कई प्रोडक्ट तो ऐसे है, जिनमें भारत का अपना एकाधिकार है। वो उनका निर्यात करता है। कच्चे माल के निर्यात के मामले में तो भारत को गॉड-गिफ्ट मिला हुआ है। यहाँ लेबर की भी कमी नहीं है और हा....!!! योग्यता तो यहाँ जैसे विरासत में ही मिली हो।

   कुल मिलाकर मेरे कहने का यह भावार्थ है कि आज अपना देश विश्व में अपना अच्छा-खासा स्थान रखता है। जो अपने आप में बहुत बड़े गर्व की बात है।

   अब ये तो हुई अपने देश के विकास की बात जो आप खुद भी जानते है और आपको गर्व भी है। पर मै जो बात करने जा रहा हूँ। उसे पढकर आपको शर्म तो महसूस होगी। पर जो हकीकत है, उसे कौन बदल सकता है???

   अब मै सबसे पहले युद्ध में बहुत ही उपयोगी और युद्ध के महत्वपूर्ण पार्ट एयरबेस के जेट की बात करूँगा। जिसको उतारने के लिए या उड़ाने के लिए एअरपोर्ट की जरुरत पड़ती है। और ये एक बेसिक जानकारी है जो आप सभी को पता है। पर मै उस एअरपोर्ट की बात आपसे करना चाहूँगा। जिसमें पाकिस्तान, भारत से एक कदम आगे है। पाकिस्तान ने ऐसे हाईवे या यु कहे की ये हाईवे और एअरपोर्ट दोनों का काम करते है, विकसित कर लिए है। जो अभी तक भारत में नहीं है। ये हाईवे आम दिनों में गाड़ियों के आवागमन के लिए इस्तेमाल किये जाते है। लेकिन जब देश में कोई आपातकालीन स्थिति बन जाती है तो इन हाईवे पर ये जेट भी उतार सकते है। जिससे देश के किसी भी हिस्से में इन ऐयरजेट्स की पहुँच बन जाती है और उस आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए समय की भी बचत होती है और कार्य एकदम तेजी से हो जाता है। कुछ किष्म के परमाणु हथियार भी भारत की अपेक्षा पाकिस्तान के पास ज्यादा है। जो भारत या यु कहे कि पुरे विश्व के लिए ही घातक है।

   अब ये तो युद्ध के समय की बात हो गयी और भारत के पास भी कोई कम युद्ध सामग्री नहीं है कि पाकिस्तान को जवाब ना दिया जा सके। भारत भी इस मामले में बहुत विकास कर चूका है। वर्तमान केंद्र सरकार युध्द सामग्री और किसी भी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिए प्रयासरत है। वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने पिछले 3 सालों में ऐसी कई योजनाओं पर कार्य किया है, जिससे अपना देश भी किसी भी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने में सक्षम बन गया है। आज अगर भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ जाता है तो पाकिस्तान को कारगिल वाली शिकस्त फिर से जैलनी पड़ेगी।

   अब मै दूसरी ऐसी विडम्बना के बारे में बात करूँगा। जो दिखने और समझने में बहुत ही छोटी बात लगती है पर वाकई में इस बात को हम जितना छोटा समझ रहे है, उतनी छोटी है नहीं। आप मेरा इसारा समझ गए होंगे। मै बात कर रहा हूँ...... देशभक्ति की भावना की।

   अब आपको में कुछ दिनों पहले हुए एक वाक़ये के बारे में बताना चाहूँगा। जो शायद आप सबको पता ही होगा। मैंने भी प्रातःकाल न्यूज़ पेपर में पढ़ा था और वो ये है कि विराट कोहली (भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाडी) के किसी पाकिस्तानी प्रशंसक ने 26 जनवरी, 2016 (भारतीय गणतंत्र दिवस) के दिन पाकिस्तान में अपने निवास-स्थान (मकान) के ऊपर भारतीय ध्वज (तिरंगा) फहरा दिया। तो पाकिस्तानी पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके कोर्ट में पैश कर दिया। जिसके बाद उस पर देशद्रोह का केस चलाकर उसको 10 साल की सज़ा सुना दी गयी। आज वो अपनी 10 साल की सज़ा काट रहा है। अब इसमें देशभक्ति की बात तो वहा है कि किसी भी पाकिस्तानी नागरिक ने या वहा के किसी भी राजनीतिज्ञ ने उसके विरोध में एक शब्द भी नहीं बोला और ना ही उसका किसी ने साथ दिया। क्योंकि पाकिस्तान के कानून के मुताबिक वो देशद्रोही है।

   अब ये तो हुई पाकिस्तान की देशभक्ति की बात। अब मै आपको अपने भारत देश की देशभक्ति की बात बताता हूँ। पिछले कुछ दिनों से या यु कहे कि जब से माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री बने है, तब से ही भारत में एक अलग ही माहोल बना है। देश विकास की नित नयी बुलंदियों को छु रहा है। अब ये विकास और आम जनता का वर्तमान केंद्र सरकार पर विश्वास कुछ लोगों बहुत खटक रहा है, बर्दास्त नहीं हो रहा है।

   अब इसका ताज़ा उदाहरण आप JNU में चल रहे विवाद से ही देख सकते है। कुछ लोग माननीय मोदी जी के इतने बड़े विरोधी है कि उनको ये भी नहीं पता कि मोदी जी का विरोध करने के चक्कर में वो देशद्रोहियों का खुलकर समर्थन कर रहे है। इससे देश की जनता को उनकी हकीकत पता चल रही है। आज की जनता सब कुछ समझती है। आज की जनता को देशद्रोहियों का असली चेहरा साफ़ नजर आ रहा है।

   अब एक तरफ तो पाकिस्तान की देशभक्ति को देखों और दूसरी तरफ भारत की देशभक्ति को देखों। आपको खुद को पता चल जायेगा कि हम आज भी देशभक्ति के मामले में पाकिस्तान से कई कदम पीछे है। ये वाकई सोचने वाली बात है। आत्ममंथन करने की जरुरत है। और ये देश की केंद्र सरकार नहीं कर सकती। ये भारत की आम जनता को ही सोचना पड़ेगा। इस ओर कदम आम जनता को ही उठाना होगा।

   आगे आपकी अपनी मर्जी है कि आप देश के बारे में क्या सोचते है और क्या नहीं???

बस आज इतना ही........

जय हिन्द। जय भारत माता की। वंदेमातरम्।

Tuesday 16 February 2016

JNU में चल रहे विवाद पर मेरी टिपण्णी...


  
   जवाहरलाल नेहरू यूनिवरसिटी (JNU), दिल्ली में जो विवाद चल रहा है। उसे सुनकर दुःख होता है कि अपने ही देश के युवा अपने ही देश के विरोध में खड़े हो रहे है। जिन युवाओ को भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाता है। जिन युवाओ के कंधो पर देश की जिम्मेदारी है। भारत माँ की आन, बान और शान की रक्षा की जिम्मेदारी है, वो ही युवा भारत माँ को लज्जित कर रहे है।
  
   एक तरफ उस जमाने को देखो..... जब भारत माँ के लाडलो ने भारत माँ की आन, बान और शान की रक्षा के लिए सब ऐसो-आराम छोड़कर अपनी जान हथेली पर लेकर लड़ गए थे। अपने से कही गुना ज्यादा ताकत से भीड़ गए थे। अपनी जान की फिकर नही थी उनको, पर भारत माता की इज़्ज़त उनके लिए सर्वोपरि थी। उन्होंने इतने दुःख सहने के बाद भी "इंकलाब जिंदाबाद" या "वंदेमातरम्" बोलना नही छोड़ा। मरते दम तक, आखरी सांस तक उन्होंने "भारत माता की जय" बोला। वो तो चले गए, पर भारत माँ को उसका हक़ दिला गए। भारत माँ को उसकी इज़्ज़त रूपी चुनरी ओढ़ा गए। वो शहीद हो गए। उनको आज भी पूरी दुनिया नमन करती है।

क्या उन शहीदों के परिवार नहीं थे?
क्या वो गद्दारो से हाथ मिलाकर हर ऐसो-आराम नहीं पा सकते थे?
क्या उनको मरने का शोक था?
क्या वो आज के युवाओ की तरह युवा नही थे?
क्या वो भी गद्दारी कर देते भारत माँ के साथ तो क्या आज के युवा ऐसे विरोध जता सकते थे? या ऐसे प्रदर्शन कर सकते थे?

   आज के युवाओ के लिए देश क्या नही कर रहा है??? मोदीजी या आज की सरकार युवा सोच के साथ ही तो आगे बढ़ रही है। इतने कम समय में इतना दुनिया में भारत माँ का नाम हुआ, तो ये क्या कम बात है???

   आज के युवाओ को तो गर्व होना चाहिए अपने आप पर, अपनी सरकार पर कि ऐसी सरकार हमें नशीब हुई जो दिन-रात भारत माँ के बारे में सोचती है। दिन-रात देश के भविष्य के बारे में सोचती है। दिन-रात युवाओ के विकास के बारे में सोचती है।

   और आज का युवा ये सब कर रहा है। शर्म आती है मुझे उन युवाओ को भारतवासी कहते हुए। अरे...!!! एक तरफ आज की सरकार दुनिया में भारत माँ के गद्दारो को सबक सिखाने में जुटी है और एक तरफ खुद भारत माँ के लाल ये सब कर रहे है।

   अब जब गद्दार अपने ही देश में बैठे है तो मेरे विचार से हमारे पास एक ही चारा बचता है और वो है.......
   इन गद्दारो के विरुद्ध आम जनता पूरी तरह मोर्चा खोल ले। आम जनता जो देश का भला चाहती है, वो इनके साथ अपने जो भी सम्बन्ध हो, तोड़ दे। इनकी हर सुविधा पर बेन लगा दे। अपने आस-पास जो भी गद्दार दिखाई दे, उसे या तो पुलिस को शौप दे। या अपने हिसाब से उसे ऐसी सजा दे कि वो सपने में भी ना सोचे गद्दारी करने की।
बाकि काम तो पुलिस या प्रशासन कर ही रहा है।

   मैंने सुना था कि कुछ लोगो ने इन गद्दारो को सबक सिखाने के लिए मोर्चा खोल लिया है। उनको में तहे दिल से धन्यवाद देता हूँ।
  
   जिनमे मुख्य रूप से वो मकान-मालिक है, जिनके घर में ये लड़के किराये पर रहते थे। उन मकान-मालिको ने उनको घर से निकाल दिया। माननीय श्री रतन जी टाटा (टाटा ग्रुप) ने भी बहुत ही सराहनीय कदम उठाया इन युवाओ के विरोध में। उन्होंने JNU के किसी भी छात्र को नौकरी देने से स्पष्ट मना कर दिया। माननीय श्री रतन जी टाटा वेसे भी देशप्रेम के लिए प्रसिद्ध है। उनके देश के प्रति प्रेम के कई किस्से आपको मिल जायेंगे। उन्होंने थोड़े समय पहले पकिस्तान का बहुत बड़ा आर्डर पूरा करने से मना कर दिया था। जिसमे पाकिस्तान ने उनसे उनकी 4 पहिया गाडियो को खरीदने की बात कही थी। ऐसे राष्ट्रभक्त को नमन्। विरोध के सिलसिले में आगे अपने सैनिकों ने भी विरोध जताया। भारत माता के प्रेमी सैनिकों ने जिनमे कई सैनिक JNU से डिग्री प्राप्त है, उन्होंने अपनी डिग्रीयां वापस करने का फैसला लिया। ये वाकई काबिले-तारीफ है। अपने देश में वकीलो को भ्रष्टाचार का अड्डा माना जाता रहा है, लेकिन उन्होंने भी देशभक्ति दिखाकर उन युवाओ की कोर्ट में ही जमकर धुलाई कर दी। वो कानून के जानकार होने के बावजूद उन्होंने कानून अपने हाथ में ले लिया। ये देशभक्ति नही तो और क्या है???
   मै उन तमाम मकान-मालिको, सैनिकों, वकीलो और माननीय श्री रतन जी टाटा को नमन् करता हूँ, जिन्होंने ऐसे समय में देशभक्ति का परिचय दिया।

   अब मै आपका थोडा सा ध्यान राजनीति की और ले जाना चाहूँगा। वेसे आप खुद समझदार है। आप खुद राष्ट्रभक्त और गद्दार में अंतर निकाल सकते है। पर फिर भी मै मेरे विचार आपके सामने रखना चाहूँगा। मै कोई नयी बात नही कर रहा हूँ। मै तो वही बताने का प्रयास कर रहा हूँ, जो आप सब जान रहे है, देख रहे है, समझ रहे है। पर मै मेरे सोच के आधार पर आपको कुछ बताना चाहता हूँ। मेरे विचार किसी भी राजनितिक पार्टी को सपोर्ट करने के लिए नहीं है या किसी भी राजनितिक पार्टी का विरोध नहीं करते है। पर जो देश के साथ हो रहा है, वो कहे बिना नही रह सकता।

   मै सबसे पहले अपने देश की राजनीती की स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूँ। जिसे मै अपने देश के कुछ बड़े राजनितिक ओहदों पर बैठे नेताओं के बयानों द्वारा आपको बताना चाहता हूँ।

01. श्री राहुल गाँधी (सांसद, उपाध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी): जो कि मोदीजी के घोर विरोधी और दलितों के मसीहा भी कहे जा सकते है। अब इनको ये पता नही है कि राजनीती किसे कहते है? और ये राजनीती कर रहे है। JNU मामले पर इनका बयान आया कि केंद्र सरकार युवाओ के बोलने का अधिकार छीन रही है। उन युवाओं के विरुद्ध कार्यवायी को ये स्वतंत्रता से जोड़ रहे है।
   अब क्या देश के विरुद्ध बोलने और देश के साथ गद्दारी करने को भी ये देशवासियों का हक़ समझने लगे है?
   क्या देशद्रोह करना अपराध नही है?
   अगर अपराध है तो सरकार का कर्त्तव्य नही बनता कि उस पर लगाम लगाये?
   और अगर सरकार ऐसे अप्राकृतिक तत्वों के विरुद्ध कार्यवाई करती है तो इसमें गलत ही क्या है?
   कांग्रेस के राजकुमार ने अपने बयानों और JNU के युवाओ का समर्थन करके एक बार फिर ये साबित कर दिया कि कांग्रेस पार्टी का मूल मकसद भारत माता को फिर से गुलाम बनाना है। भारत माता के टुकड़े करना है। देश को बर्बाद करना है।

02. श्री नितीश कुमार (मुख्यमंत्री, बिहार): ये बिहार का चुनाव जीत गए तो इन्हें लगता है कि ये प्रधानमंत्री बन गए है। मोदीजी के घोर विरोधियो में इनका मुख्य नाम आता है। हाफिज़ सहिद के JNU समर्थन वाले ट्वीट के बाद माननीय श्री राजनाथ सिंह जी के बयान के सबुत मांग रहे है। क्या इनको पूरा मामला पता नही है? यदि है तो सबुत मांगकर ये अपने आप को दोशद्रोही ही साबित कर रहे है और यदि नहीं है तो उनको बिना जाने कुछ बोलना भी नहीं चाहिए। अब ये माननीय श्री राजनाथ सिंह जी से सबूत मांग रहे है। तो...
   क्या इन्होंने JNU के युवाओ से कुछ सबूत मांगे कि एक आतंकवादी कैसे देशभक्त हो गया? जबकि ये साबित हो चूका था की याकूब एक आतंकवादी था और उसका मुम्बई बम्ब ब्लास्ट, 1993 में बहुत बड़ा हाथ था।
   क्या अब ये फिर से साबित करना पड़ेगा कि अफज़ल एक आतंकवादी था?
   और सबसे बड़ी बात ये मामला दिल्ली का है और नितीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री है। इस हिसाब से तो इनको वहा बोलने का कोई हक़ ही नही बनता। इनको बिहार में चल रहे जंगलराज पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। ना कि दिल्ली के अंदरुनी मामलों पर।

03. श्री अरविन्द केजरीवाल (मुख्यमंत्री, दिल्ली, आम आदमी पार्टी के मुखिया): इनको देश का बच्चा-बच्चा जानता है। ये धरना देने के लिए प्रसिद्द है। इनको भी JNU के युवाओं के समर्थन में देखा गया है। इनको दिल्ली में रहते हुए भारत माँ के लाल शहीद श्री हनुमन्नथप्पा जी को देखने जाने की फुरसत नहीं मिली, पर देश के गद्दारो का समर्थन इन्होंने पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ किया।

   ये राजनीती और अपने वोट-बैंक की खातिर अपने देश के गद्दारो का साथ भी दे सकते है। अब इनके बारे में ओर क्या कहे? ये इतने गिर सकते है कि देशद्रोहियो का खुलेआम समर्थन कर रहे है। अब ऐसे नेताओं को जिताकर जनता एक तरह से अपनी भारत माता का सौदा ही तो कर रही है।

   भारतीय जनता ने मोदीजी को जीताकर बहुत ही बढ़िया कदम उठाया, पर दिल्ली और बिहार की जनता ने उस कदम पर पानी डालने के अलावा कुछ भी नहीं किया। और आज तक वो इस गलती की सजा भुगत रहे है।

   मेरी एक बार पुनः आप सभी देशवासियों और देशभक्तों से निवेदन है कि खाली अपना ही स्वार्थ ना देखे। देश के बारे में भी थोडा सोचे। खाली आलू-प्याज और भिन्डी के भाव के अलावा भी इस देश में बहुत कुछ है। जो आपकी, मेरी या यू कहू की हम सबकी जिम्मेदारी है। उस जिम्मेदारी का भी कभी-कभी ख्याल करें।

   हम सब देश के बॉर्डर पर जाकर तो नहीं लड़ सकते। पर देश के अंदर, अपने आस-पास छुपे गद्दारों का पर्दाफास करके भी तो देश-सेवा कर सकते है। ये देश आपका, मेरा, हम सबका है। इसलिए इसकी हिफ़ाजत करना भी अपना ही फर्ज है।

   जय हिन्द। जय भारत माता। वंदेमातरम्।
और हा.....!!! मै तो "इंकलाब-जिंदाबाद" और "मोदीराज की जय" भी बोलूंगा। अब आप बोलो या ना बोलो, ये आपका अपना फैसला है। जय श्री राम।