Wednesday 22 September 2021

जातिवादी मानसिकता: हिंदुत्व के लिए दीमक.

मैंने एक ऐसे घर के संबंध में सुना है, जिसका मालिक कहीं दूर यात्रा पर गया था। बहुत बड़ा भवन था, बहुत नौकर थे। वर्षों बीत गए, मालिक की खबर नहीं मिली। मालिक लौटा भी नहीं, संदेश भी नहीं आया। धीरे-धीरे नौकर यह भूल ही गए कि, कोई मालिक था भी। भूलना भी चाहते हैं नौकर कि, कोई मालिक है, वे भी भूल गये!

जब कभी कोई यात्री उस महल के सामने से गुजरता और कोई नौकर सामने मिल जाता, तो वह उससे पूछता, "कौन है इस भवन का मालिक?"

तो वह नौकर कहता, "मैं!"

लेकिन आस-पास के लोग बड़ी मुश्किल में पड़े। क्योंकि कभी द्वार पर कोई और मिलता और कभी कोई, बहुत नौकर थे और हर नौकर यही कहता कि, "मालिक मैं हूं।" 

जो मिल जाता वही कहता, "मैं!"

आस-पास के लोग बड़े चिंतित हुए कि, कितने मालिक हैं इस भवन के?

फिर एक दिन गांव के सारे लोग इकट्ठे हुए और उन्होंने पता लगाया और सारे घर के नौकर इकट्ठे किये, तो मालूम हुआ कि, वहां कई मालिक थे। तब बड़ी कठिनाई खड़ी हुई, सभी नौकर लड़ने लगे। सभी कहने लगे, मालिक मैं हूं और जब बात बहुत बढ़ गई, तब किसी एक बूढ़े नौकर ने कहा, "क्षमा करें! हम व्यर्थ विवाद में पड़े हैं। मालिक घर के बाहर गया है और हम सब नौकर हैं। मालिक लौटा नहीं बहुत दिन हो गए और हम भूल गए और अब कोई जरूरत भी नहीं रही याद रखने की, क्योंकि शायद वह कभी लौटेगा भी नहीं।"

फिर मालिक एक दिन लौट आया। तो उस घर के पच्चीस मालिक तत्काल विदा हो गए। वे तत्काल नौकर हो गए।

मुझे भी उस मालिक का इंतज़ार है, जिसके आने के बाद ये जातिवादी विचारधारा रूपी नौकर (जो अपने आप को मालिक समझ बैठे है।) की विदाई हो और ये फिर से नौकर बन जाएं। ताकि ये आपस में न लड़कर अपने कर्त्तव्य के लिए लड़े।

जातिवादी विचारधारा दीमक है, जो अंदर ही अंदर हिंदुत्व को खोंखला किये जा रही है। इससे अगर बचा नहीं गया, तो जातियों के साथ कुछ और भी टूटेगा और आवाज तक नहीं होगी। वह होगा.... हिंदुत्व!

जातिवादी मानसिकता से बचना होगा, तभी हम हिंदुत्व को बचा पाएंगे।