Wednesday 12 October 2022

वाणियां, ने गु खाणियां

शीर्षक पढ़कर शॉक लगा न, गुस्सा आया न...!

तो सोचो, मुझे एक अजैनी ने लगभग 45-50 लोगों के बीच में जब यह बात बोली, तो मुझे कितना गुस्सा आया होगा? मुझे कितनी बड़ी इन्सल्ट महसूस हुई होगी? मेरा मुँह कैसा हुआ होगा? सोचो...!!!

अब मैं अपने साथ घटित घटना के बारे में जिक्र करना चाहूंगा। जो कुछ इस प्रकार थी...

हुआ यूं कि, मैं एक समूह में किसी जगह (जगह या व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लूंगा, क्योंकि यह मेरे सिद्धांत के अंतर्गत नहीं है।) मैं बैठा था। जिसमें लगभग 45-50 लोग बैठे थे। चूंकि मैं जैन तो हूँ, पर सनातन धर्म से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हूँ। इसलिए मेरे अलावा वहां लगभग सभी सनातनी ही थे। हम विभिन्न धर्मों, राष्ट्र और जातिवादी सोच पर बातचीत कर रहे थे। वहां बैठा हर कोई हर मुद्दे पर खुलकर बात कर रहा था। जिसको जो विचार सही लग रहा था, उसका वह खुलकर समर्थन भी कर रहा था और इस तरह हमारी बातचीत आपस में बहस और हंसी-मजाक के साथ चल रही थी।

मेरी एक आदत है कि, मैं सामने वाले को बोलने देता हूँ और उसकी सुनकर फिर अपने विचार रखता हूँ। (इसे आप आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदत भी कह सकते है।) तो इस आदत के अनुसार मैं भी सुन रहा था।

अब इतने लोग आपस में किसी मुद्दे पर बात करें और मैं ज्यादा देर चुप रह जाऊं, ये तो आपको पता ही है कि, मेरे लिए नामुमकिन है। तो मैं भी अनायास ही या आदतानुसार उस बहस और हंसी-मजाक के माहौल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

अब जब वहां बैठे सभी लोग सनातन धर्म की प्रशंसा और बाकी धर्मों की बुराई कर रहे थे, तो मैं कहा पीछे रहने वाला था। मैंने भी अपने धर्म को सनातन धर्म का हिस्सा बताकर प्रशंसा में एक-दो बातें बड़े आत्मविश्वास और गर्व के साथ कह दी।

जैसे... हमारे जैन धर्म में तो एकेन्द्रित जीव तक की रक्षा को तवज्जो दी गयी है। हमारा धर्म बड़ा बारीकी तक है। हमारे जैनियों की जनसंख्या देश में सिर्फ 01% है, पर हम सबसे ज्यादा टेक्स भरते है। हमारे जैन धर्म के सिद्धांतों को विज्ञान ने भी सराहा है। हमारी परम्पराराएं (नियम) Scientifically Proofed है। हमारे धर्म में ये है, वो है आदि-आदि...!

[अब मेरी जैन धर्म के प्रति प्रशंसा करते समय यह स्थिति हो गयी कि, मैं अपने आप को जैनी बताकर बड़ा गौरवान्वित महसूस करने लगा। मेरे चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट थी। कुछ समय के लिए तो मुझे ऐसा लगा कि, मैं बाकियों से बहुत उच्च हूँ, नायक (Leader) हूँ।]

यह सब चल ही रहा था कि, एक सनातनी भाई (जो कि धर्म का अच्छा ज्ञान रखता है और बड़ा सुलझा हुआ व्यक्ति है।) ने मुझे सबके बीच में अचानक एक बात बोली...

"वाणियां, तो गु खाणियां वे...!"

(सुनते ही मेरे साथ-साथ वहां बैठे हर सदस्य के मुँह का रंग उड़ गया। हम सभी शॉक हो गए और मेरी हालत यह हो गयी कि, "काटो तो खून नहीं।" मेरा मुँह फीका पड़ गया और मुझे इतनी बड़ी इन्सल्ट महसूस हुई कि, उस अनुभूति का शब्दो में वर्णन किया ही नहीं जा सकता।)

मैं कुछ ही सेकंड की चुप्पी के बाद अपने आप को संभालकर और लगभग उस व्यक्ति पर हावी होते हुए ललकारने जैसी आवाज में गरजा कि, "आप यह बात किस आधार पर कह सकते है?" (उस समय सभी के हावभाव मेरे समर्थन को दर्शा रहे थे और यह बात हम दोनों ही बहुत अच्छे से समझ गए थे।)

वह व्यक्ति बड़ा धीर-गंभीर और शांति के साथ बड़ी सुलझी हुई भाषा में बोला, "प्रवीण, तू और बाकी सदस्य मेरी बात से शॉक हो न...! तेरा दिल दुःखा हो, तो मुझे माफ़ कर दे। वो तेरे जैन धर्म में कहते है न... मिच्छामि दुक्कदम्...! पर आज तू सत्य से मुँह मत फेर।"

"चल, मैं अपनी बात साबित करके तुझे सत्य से अवगत करवाता हूँ और वह भी जैन धर्म की मर्यादा में जैन धर्मानुसार। तू तो श्रमनसंघ के मेवाड़ सम्प्रदाय से है न। चल, मैं तेरे को तेरे ही सम्प्रदाय का बताता हूँ। फिर तो तू भी मान लेगा न मेरी बात...?"

मैंने और बाकी सदस्यों ने लगभग शांति का अनुभव करते हुए उसकी बात के समर्थन में सिर से इशारा कर दिया।

अब उसने जो बोला, वह तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसकी बात अक्षरशः सही और जैन धर्मानुसार तर्कपूर्ण भी थी।

उसने कुछ तर्क रखें, जो इस प्रकार थे...

तर्क संख्या 01.
जैन धर्म में साधु-साध्वी जी के देवलोकगमन पर उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार देवलोकगमन के 48 मिनिट के बाद तक करना जैन धर्मानुसार धर्म-सम्मत है और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर में जीव की उत्पत्ति होना बताया गया है। फिर उस पार्थिव शरीर को जलाने से उसके अंदर के जीव भी साथ में जलते है और दोष लगता है, जो अक्षम्य पाप है।

अब प्रवीण, तू मुझे बता कि, इस आगमानुसार नियम को कितने जैनी आज फॉलो करते है?

यह नियम तो छोड़, दो-दो दिन तक उस पार्थिव शरीर को इधर से उधर ले जाया जाता है। यहां दर्शन, वहां दर्शन... डॉल यात्रा आदि के नाम पर कितना पाप हो रहा है? कभी सोचता है क्या, तेरा अहिंसक जैन समाज?

उदाहरण के तौर पर तू अपने ही गुरुदेव के अंतिम संस्कार को देख लें।

असंख्य जीवों को जिंदा जलाने वाले समाज को तू अहिंसक कहता है? क्यों, यही है अहिंसक होने की परिभाषा?

तर्क संख्या 02.
जैन धर्म में आडंबर के लिए कोई जगह नहीं है। पर आज जैन धर्म में ही सबसे ज्यादा आडंबर हो रहा है। क्या यह जैन धर्म-सम्मत है? क्या यह जैन धर्म के पवित्र ग्रन्थ आगम के अनुसार है?

और तेरे आराध्य गुरुदेव सौभाग्य मुनि तो आडंबर के कड़े विरोधी रहे है। यह बात तो तुझे भी पता है न। फिर आज उनके ही नाम पर कितना आडंबर हो रहा है? तू खुद देख लें।

मतलब यह बात तो वही हो गयी कि, बाप ने धर्म को बचाने अपनी जिंदगी खपा दी और आज बेटे उसी धर्म को भरे बाजार में नीलाम कर आएं।

तर्क संख्या 03.
मुझे एक बात समझ नहीं आयी। गुरु की पुण्यतिथि पर खुशियां मनाई जाती है या दुःख जताया जाता है?

हमारे घर में घर का एक पालतू जानवर भी मर जाये, तो उस दिन हमारे घर में चूल्हा नहीं जलता और सभी पारिवारिक सदस्यों का मुँह उतरा हुआ रहता है। घर सुना-सुना सा हो जाता है।

अब सोचो, जैन धर्म के गुरु के देवलोकगमन से समाज को कितनी बड़ी क्षति होती है? कितने दुःख की बात है? पर यहां तो नाच-गान और हंसी-खुशी मनाई जाती है।

अब प्रवीण, तू ही बता। क्या ये सत्य नहीं है? क्या किसी साधु-साध्वी के देवलोकगमन पर खुशियां मनाना आगम-सम्मत है?

तर्क संख्या 04.
प्रवीण, तेरा जैन समाज पैसे या संस्कार के मामले में बाकी सभी से बहुत उच्च कोटि का है न। फिर मुझे बता, जब सौभाग्य मुनि का अंतिम संस्कार पूर्ण भी नहीं हुआ था और तेरे समाज के वही संस्कारी लोग खाने पर टूट पड़े थे। यह वाकया तो तेरे सामने ही हुआ न...! तू खुद इस बात का गवाह है। तो क्या इसे ही तू संस्कार कहता है? क्या यही जैनियों के संस्कार है?

अगर ये ही जैनियों के संस्कार है, तो भूखे-नंगों में और जैनियों में क्या फर्क है? बता तो...!

बाकी तो तुम लोग उपवास, बेला, तेला, अट्ठाई और न जाने क्या-क्या तपस्या करते रहते हो। फिर 02 घंटे नहीं खाते, तो क्या मर जाते? बोल...!

तर्क संख्या 05.
प्रवीण, अब और सुन... तेरे जैन साधु-साध्वी मोबाइल आदि आधुनिक उपकरण इस्तेमाल करते है। लेकिन सामायिक में सेल वाली घड़ी का भी इस्तेमाल नहीं करने देते। तो मुझे बता, वह साधु-साध्वी कैसे? क्या यह भी आगम के अनुसार सही है?

तर्क संख्या 06.
आज तेरे समाज के संस्कारों की बात करूं, तो देश में सबसे ज्यादा विधर्मियों के साथ जैन लडकियां ही भाग रही है और तेरे समाज का इस विषय पर कोई ठोस उपाय आज तक नहीं सुना। दूसरी तरफ तेरे जैनी लड़के 30+ की उम्र में कुंवारे डोले खा रहे है और सबसे बड़ी बात, तेरे समाज की लड़कियां जैन लड़को से शादी करने की बजाय विधर्मियों के साथ भागना पसंद कर रही है। इसे तू संस्कार कहता है?

आज सबसे ज्यादा अश्लीलता तेरे जैनियों ने फैलाई है। तेरे जैन समाज की लड़कियों के कपड़े देखकर तो तू यह फर्क ही नहीं कर सकता कि, Bar Girls और तेरे समाज की सुसंस्कारी लड़कियों में फर्क क्या है? क्या जैन समाज इसे ही आधुनिकता कहता है?

क्या इन्ही संस्कारो पर तुम जैनी इतना फुदकते हो?

तर्क संख्या 07.
जैनियों के सुसंस्कृत समाज की भुक्कड़ता देखनी हो, तो जैनियों के किसी सार्वजनिक भोजन में चले जाओ या प्रभावना बंट रही हो, वहां चले जाओ।

ऐसे स्थान पर तो लोग ऐसे ऊपर पड़ते है, जैसे वहां कोई अन्नकूट महोत्सव चल रहा हो। महिलाएं तो लाज-शर्म खूंटी पर टांगकर ऐसी पहलवानी करती नजर आती है कि, बस, पूछो ही मत।

प्रवीण, क्या यह बात सही नहीं है? इस पर तो तूने खुद भी एक लेख लिखा है। (https://mypersonalthinkmynewblock.blogspot.com/2020/02/blog-post.html) क्योंकि इस तरह की असभ्यता ने तो तुझे भी अंदर तक हिलाया है, रुलाया है।

अब तो तू भी मानता है कि, मैंने सही बोला...???
और भी कई उदाहरण दे सकता हूँ। बाकी तो तू खुद ही समझदार है।

(और प्रवीण, एक बात मैं तुझे फिर से याद दिला दूं कि, मैंने जो बातें कही है न। वो सब आगम के अनुसार कही है और मैंने कभी आगम पढ़ने की बात तो छोड़, देखे भी नहीं है। यह तो मुझे एक जैन संत ने ही बताया था। मतलब यह सब मैं नहीं कह रहा, बल्कि तेरे अपने संत और पवित्र ग्रंथ आगम खुद कहते है। बाकी मैं न तो किसी धर्म का विरोधी हूँ और न ही किसी धर्म के ऊपर छींटाकसी करना पसंद करता हूँ। पर हा, गलत परंपराओं का विरोधी जरूर हूँ।)

अब क्या तेरे जैन संत और पवित्र ग्रन्थ आगम भी झूठे है? क्या अब भी तुझे लगता है कि, जैन समाज सुसंस्कारी समाज है?

मुझे एक बात बता, जो जैन समाज अपने तीर्थंकरों का नहीं हो सका, उनके उपदेशों का नहीं हो सका। उस जैन समाज के लिए तू कहता है कि, देश में सबसे बड़ा योगदान जैनियों का है...! बहुत आश्चर्य की बात है, यार...।

कभी समय मिलें न, तो अपने गिरेबान में झांककर देखना, तुझे शर्म आएगी अपने जैनी होने पर। क्योंकि सही मायनों में तुम जैनी कहलाने के लायक ही नहीं हो।

मैं अब उसका विरोध किस मुँह से करता? चूंकि वह सही ही था। मैंने भी उसको मन ही मन प्रणाम करते हुए उसकी बात स्वीकार कर ली। क्योंकि बात तो उसकी सही ही थी।

(यदि किसी जैनी को इस विषय पर कोई भी बात करनी हो, तो सीधे मुझसे बात करें। मेरा निजी मोबाइल क्रमांक +91-9079103901 है। जिस पर आप कॉल भी कर सकते है और व्हाट्सएप्प भी...। इस लेख का उद्देश्य किसी भी जैन अनुयायी के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि समाज सुधार की दृष्टि से यह लेख लिखा गया है। यदि फिर भी किसी के दिल को ठेस पहुंची, तो लेखक की तरफ से बारम्बार क्षमायाचना...!)