Tuesday 27 September 2016

उरी हमला: एक नापाक हरकत

कल जब मैंने अपने कार्यालय में कंप्यूटर चालू करके जैसे ही इंटरनेट चालू किया। एक ब्रेकिंग न्यूज़ बहुत ही ज्यादा चल रही थी। मेरा ध्यान अनायास ही उस पर चला गया। मैंने जब न्यूज़ को पूरी खोलकर पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए। यह न्यूज़ थी "उरी में 26 साल में पहली बार किसी आर्मी बेस पर बड़ा हमला: 20 जवान शहीद, 4 आतंकी ढेर"

इस दो लाइन्स को पढ़ने के बाद मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने पूरी न्यूज़ की तह तक जाने की सोची। जब मैं इसकी तह तक गया तो मुझे कही न कही यह अहसास हुआ कि जब अपनी अंतराष्ट्रीय सीमा में बाहर से कोई आतंकी घुस कर अपने आर्मी-बेस पर हमला कर सकता है तो क्या हम और आप देश मैं सुरक्षित है? ये आतंकी देश के रक्षा तंत्र पर हमला कर सकते है तो देश के किसी बड़े शहर में हमला करना इनके लिए कौनसा बड़ा काम है? अगर इन आतंकियो ने आर्मी केम्प पर हमला करके 20 जवानों को मार दिया तो क्या ये इसी तरह किसी बड़े शहर में हमला नहीं कर सकते? तब हम और आप कैसे सुरक्षित हुए?

सवाल तो बहुत है मेरे मन में। पर क्या हमने इनसे कुछ सबक लिया? जैसा कि आप सबको पता ही होगा कि अभी लगभग 8 महीने पहले भी इसी तरह की एक आतंकी घटना को पठानकोट में अंजाम दिया गया था। तो क्या हम पिछले हमले के बाद भी कुछ नहीं सीखें? और अगर नहीं सीखें तो आखिर क्यों?

जब कभी भी ऐसी घटना होती है तो सबसे पहले भारतीय राजनीति के योद्धा सक्रीय हो जाते है। जैसे इस हमले के पीछे भी केंद्र में शासित सरकार का हाथ हो। इस समय तो हम सब भारतीयों को एक होकर जाति-पाती, राजनीती, पार्टी और आपसी भेदभाव भुलाकर एक होना चाहिए। क्योंकि यह देश की सुरक्षा का मामला है। लेकिन दुःख तो तब होता है जब ऐसे योद्धा, जिनके हाथ में देश के सवा सौ करोड़ लोगो ने देश की बागडोर सौंप रखी है, वे एक दूसरे को दोषी ठहराते है। इस समय जब देश के ऊपर इतनी बड़ी विपदा आई हुई है, ये राजनितिक रोटियां सेंक रहे है और आपस में बिखराव पैदा करने की कोशिश कर रहे है। यह भारतीय राजनीति का कड़वा सत्य है। जिसे शायद सभी जानते है। पर कुछ लोग जानकर भी अनजान बन जाते है और कुछ लोग इसको अपनी कलम से कागज पर उतार लेते है। लालू प्रसाद यादव का इस हमले पर राजनितिक बयानबाजी वाला बयान कही न कही दुखी करता है। उन्होंने ऐसी स्थिति में भी पीएम मोदी पर निशाना साधा और कहा कि "सरकार की लापरवाही की वजह से यह घटना हुई है।" जबकि उनको पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से देश का कार्यभार संभाला है, तब से ही उनका ध्यान देश की सुरक्षा पर रहा है और उन्होंने इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य भी किया है। जो विश्व विख्यात है।

यह तो भारतीय राजनीति की बात हो गयी। पर मैं बात कर रहा था जम्मू-कश्मीर में आर्मी ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर रविवार सुबह आतंकियों द्वारा किये गए हमले की।

यह हमला लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के नजदीक उरी सेक्टर में मौजूद आर्मी हेडक्वार्टर में हुआ। यह हमला तब हुआ जब आप और हम सब भर नींद में होते है, यानि की सुबह 4 से 5 बजे के करीब और तब अपनी आर्मी के जवान सो रहे थे। अब आप सोचो कि सोते हुए पहलवान पर अचानक अगर कोई दुबला-पतला आदमी भी वार कर दे तो वह बड़ी आसानी से जित सकता है और इस हमले में भी यही हुआ है। आतंकियो ने सोते हुए जवानों पर ताबड़-तोबड़ हमला कर दिया। इससे पहले की हमारे जवान कुछ समझ पाते, वे शहीदों की लिस्ट में जुड़ चुके थे। इसमें 20 जवान शहीद हो गए और 19 से ज्यादा घायल हो गए। लेकिन इस अचानक हुए हमले से भी हमारे जाँबाजों का हौसला पस्त नहीं हुआ, बल्कि दोगुने जोश के साथ उन्होंने इस अचानक आई विपत्ति का सामना किया और 4 आतंकियों को मार गिराया।

अब आप सोच रहे होंगे कि 20 के बदले सिर्फ चार, तो आपकी जानकारी के लिए बता दू कि अब तक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 4-5 आतंकियों ने ही इस घटना को अंजाम दिया है। जिसमें से लगभग सब मुठभेड़ में मारे जा चुके है और अगर कोई बाख भी गया तो वह यहा से बचकर नहीं जा सकता। क्योंकि हमारे जवानों ने हमले वाले पुरे क्षेत्र को गेर लिया है और कड़ी पूछताछ और निगरानी चालू है।

भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस हमले के बाद अपना विदेशी दौरा भी टाल दिया है। वे रूस और अमेरिका के दौरे पर जाने वाले थे। उन्होंने एक आपातकालीन बैठक भी बुलाई, जिसमें रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर, एनएसए अजीत डोभाल, होम मिनिस्ट्री के अफसर, IB, RAW के अफसर शामिल हुए। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस हमले के बाद वहा के हालात का जायजा लेने के लिए जम्मू-कश्मीर के गवर्नर और वहां की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से भी बात की है।

केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद यह दूसरा ऐसा हमला है जिसने पुरे देश को हिलाकर रख दिया है। इससे पहले लगभग 8 महीने पहले पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ था। इसमें 7 जवान शहीद हुए थे। यह भारत के इतिहास में बहुत बड़ा हमला बताया गया था। पर अब इसका कीर्तिमान इस हमले ने तोड़ दिया है। किसी का बनाया कीर्तिमान तोडना अपने-आप में बड़े गर्व की बात है, पर जब ऐसे कीर्तिमान नकारात्मक स्थिति में बनने लगे तो यह बड़े शर्म की बात है। जो कि किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता।

उरी में हुआ यह हमला पिछले 26 सालों में सबसे बड़ा हमला बताया गया है। आपको बता दू कि जम्मू कश्मीर में 1990 से अशांति का माहौल व्याप्त है और सबसे बड़ी बात इस हमले का स्थान LoC से एकदम करीब है। जो सबसे बड़ी दुखद खबर है। उरी में हुआ यह आतंकी हमला पहला हमला नहीं है, बल्कि यहा पहले भी ऐसा हमला हो चूका है। इससे पहले दिसंबर, 2014 में उरी सेक्टर में ही झेलम नदी के रास्ते 6 फिदायीन घुसे थे। उन्होंने मोदी के कश्मीर दौरे से 4 दिन पहले इसी कैम्प सहित चार ठिकानों पर हमला किया था। इस हमले में भी आर्मी के 8 अौर पुलिस के 3 जवान शहीद हुए थे।

अब आपके दिमाग में एक सवाल आ रहा होगा कि अपनी रक्षात्मक प्रणाली इतनी मजबूत होने के बावजूद भी ये आतंकी आर्मी कैंप तक कैसे पहुँच गए? और इतने बड़े हमले को अंजाम दे दिया। तो इसका जवाब आपको वहा की भौगोलिक स्थिति से पता चल जायेगा। उरी आर्मी कैंप वहा का मुख्यालय है। जो कि हमारी रक्षात्मक शैली के लिए बहुत ही महत्त्व रखता है। वहां कई आधुनिक हथियार भी रखे हुए है। यहाँ आतंकी पास में ही बाह रही झेलम नदी के रास्ते आराम से घुसपैठ कर जाते है। 2014 कि ही तर्ज पर यह घुसपैठ भी हुई है। समय सुबह लगभग 4 बजे का होता है। जो कि आर्मी के ड्यूटी बदलने का समय है। ताकि आतंकियो को मौका मिल सके। इस बार ये यहां सीमा पर लगे तारों को काटकर यंदर आ गए और उसके बाद इन्होंने वह ग्रेनेट से हमला कर दिया, जिससे वह सो रहे आर्मी के जवान जल गए और उनकी मौत हो गयी।

इस साल में यह दूसरी बार है जब देश में आतंकियों ने फोर्स पर सीधा हमला किया है। पहला जनवरी में हुआ पठानकोट हमला था। तो दूसरा यह उरी में हुआ हमला है। एक ही साल में दो-दो हमले और वो भी सीधे आर्मी पर कही न कही दुखी भी करते है और असुरक्षा की भावना भी पैदा करते है।

घुसपैठ की ऐसी घटनाएं पहले भी कईयों बार हो चुकी है। लेकिन ऐसे भयानक हमले और वो भी सीधे आर्मी कैंप पर पहले कभी नहीं हुए। आजकल दुश्मनो का निशाना सीधा आर्मी कैंप है। जो कि बेहद खतरनाक है। क्योंकि अब स्थिति ऐसी बन रही है कि जिसे देश की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, उसे ही सुरक्षित रखना मुश्किल हो रहा है। पिछले कुछ हमले सीधे आर्मी पर होना तो यही साबित करता है।

यह एक गीदड़ जैसी और नापाक हरकत है जो हमारे कुछ दुश्मन हमें कमजोर करने के लिए करते रहते है। इससे कुछ लोगो को यह लगता है कि इससे हमने भारत जैसे देश का कुछ बिगाड़ दिया है तो यह उनकी नासमझी ही कही जा सकती है। इन पीठ पीछे वार करने वाले आतंकियो को पता नहीं है कि यह सब करके इन्होंने सोये हुए शेर को जगा कर कितनी बड़ी भूल कर दी है?

शायद आपको रामायण के एक महत्वपुर्ण किरदार रावण के बारे में तो पता ही होगा। रावण एक महापंडित और महाज्ञानी था। उसे भूत, भविष्य, वर्तमान सब पता था। लेकिन उसके काल ने उससे एक ऐसी गलती करवा दी, जो उसके जीवन की आखरी गलती साबित हुआ और उसका अंत हो गया। यह गलती तो आप सभी को पता ही है कि उसने माँ सीता जी का अपहरण कर अपनी लंका में ले गया।

आज भी शायद इतिहास अपने आप को दौहराना चाहता है। कुछ आतंकी संगठन और उनको प्रश्रय देने वाले देश उस रावण की तरह ही गलती कर रहे है। जब रावण का अत्याचार बढ़ा तो विधाता ने उसकी ऐसी गति लिखी कि उसका अंत उसकी ही गलती से हो गया।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह, रक्षामंत्री श्री मनोहर पर्रिकर और एनएसए अजित डोभाल ऐसी परिस्थियों से निपटने के लिए कार्यरत है। इसमें कोई शक नहीं। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने इस हमले की निंदा करते हुए बड़े ही ऊँचे लहजे में कहा भी है कि "मैंने होम मिनिस्टर और रक्षा मंत्री से बात की है। रक्षा मत्री मनोहर पर्रिकर हालात का जायज लेने के लिए जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं। उरी में हुए हमले की हम निंदा करते हैं। मैं देश को आश्वस्त करता हूं कि इस हमले के पीछे जो भी लोग हैं उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐसी विकट परिस्थिति में भी आएं ऐसे निडरता से भरपूर बयान से भारत के लोगो को कुछ तो ढांढस बंधेगा और मोदी जी जिस तरह कार्य कर रहे है, उस हिसाब से तो हर किसी को यही लग रहा है कि देश की बागडोर एक सुरक्षित और निडर व्यक्ति के हाथ में है।

पर सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री ऐसे हमलो को भविष्य में रोकने में कामयाब हो पाएंगे? सवाल जो भी हो। पर यह तो समय ही बता पाएगा कि इनका जवाब कभी मिलेगा या नहीं और मिलेगा भी तो क्या?

मैं भी इस हमले की निंदा करता हूँ और इस हमले में शहीद हुए भारतीय जवानों को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ।
जय हिंद।

प्रवीण सी. सिंघवी (लेखक)