Tuesday 5 September 2017

जब सभी धर्मों और सम्प्रदायों में गुरुदेव के आदेश का पालन होता है, तो अपने सम्प्रदाय में क्यों नहीं? भाग 01. (भाग 02 जल्द प्रसारित होगा।)

आज मुझे अनायास ही कबीर दास जी का गुरुदेव की महिमा का गुणगान करते हुए लिखा गया दोहा याद आ गया। जो कुछ इस प्रकार हैं...
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, का के लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोविंद दियो मिलाय।।"

मैं यू ही बैठा-बैठा सोच रहा था कि मुझे कुछ पुराने दिन याद आ गए। जब मैं विद्याध्ययन करता था। तब गुरुजनों का हम कितना सम्मान करते थे? सुबह विद्यालय जाते ही उनके चरण स्पर्श करके नमस्ते बोलते थे और वे हमें आशीर्वाद स्वरूप कुछ शब्द कहते थे। जैसे कि खुश रहो, अच्छा पढ़ों आदि और हम इतना खुश होते थे कि उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।

पर यह सब अनायास ही एक सपने जैसा लगने लगा और जब मैं उस सपने से वापस वर्तमान की ओर अग्रसर हुआ तो अचानक मुझे कुछ अटपटा-सा महसूस हुआ। क्योंकि आजकल वह सब नहीं होता, जो हमारे जमाने में होता था। अब गुरुओं को वह सम्मान नहीं मिलता, जो हमारे जमाने में मिलता था।

आज मैं अपने समाज या सम्प्रदाय के बारे में बात करु तो अपने सम्प्रदाय में भी यह सत्य साबित होता है। हमारे वर्धमान श्रमण संघ सम्प्रदाय के गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. है। जो कि एक ऐसे संत है, जिनको आचार्य श्री शिवमुनि जी म. सा. भी नमन करते है। जबकि अपने समाज की परंपरा रही है कि आचार्य श्री को महामंत्री नमन करते है। पर इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि आचार्य श्री ने महामंत्री को नमन किया हो और इस अमूल्य घड़ी का गवाह बना "कड़ियाँ गांव"। जहा इन दो अमृत धाराओं का मिलन हुआ।

उस घड़ी की मैं व्याख्या नहीं कर सकता। क्योंकि उस घड़ी को शब्दों में बाँधने की ताकत मेरी कलम में नहीं है। बस मैं इतना कह सकता हूँ कि उस अप्रतिम क्षण के समय वहां उपस्थित ज्यादातर गुरुभक्तों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। जैसे कोई ज्वार ही आ गया हो। हमारे सम्प्रदाय के महान गुरुदेव श्री अम्बालाल जी म. सा. ने हमें एक ऐसा रत्न दिया। जिसे इतिहास युगों-युगों तक भूल नहीं पाएगा।

लेकिन आज मैं यहां गुरुदेव के बारे में बताने की जरूरत नहीं समझता, क्योंकि गुरुदेव को और उनके गुणों को सब जानते है। बल्कि मैं आज बात करने जा रहा हूँ कि... गुरुदेव को तो हम सभी जानते है, पर क्या हम अपने आप को जानते है?
क्या हम अपने व्यवहार को जानते है?
क्या हम सही मायनों में गुरु-आज्ञा का पालन कर रहे है?
क्या हम ऐसा कोई कार्य तो नहीं कर रहे, जिससे अनजाने में ही सही, पर गुरुदेव की अवहेलना हो रही हो?

(एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर, दोनों आंखों को बंद करने के बाद गुरुदेव की तस्वीर को अपने मन की आंखों से देखर सोचो कि क्या इन सभी सवालों के जवाब आपको संतोषप्रद लग रहे है?)

यह एक बहुत बड़ा सवाल है आज हमारे लिए। क्योंकि मुझे इस मुद्दे पर खोज के बाद जो जानकारी मिली। वो बेहद चौकाने वाली है। इस जानकारी से मुझे तो कुछ शर्म भी महसूस हुई। जो शायद आपको भी होगी।

मुझे इस बारे में जानकारी मिली कि गुरुदेव श्री सौभाग्य मुनि जी म. सा. के आदेशों का पालन कुछ जगह तो बहुत हो रहा है, पर कुछ जगह बिल्कुल भी नहीं हो रहा है। जहां हो रहा है, वहा खुशी की बात है। लेकिन जहां नहीं हो रहा है, वहां यह काफी सोचनीय है। क्योंकि जहा-जहा समाज में कुछ बदलाव या संस्कारों (मर्यादाओं) की बात आती है, वहां गुरुदेव के आदेशों का उलंगन हो रहा है। जो काफी गंभीर समस्या है।

एक तरफ तो आज के श्रावक गुरुदेव के पीछे उनके साएं की तरह चलते है और दूसरी तरफ उन्ही के आदेशों की अवहेलना करने से नहीं चूकते।

कबीर ने एक ओर दोहे के माध्यम से गुरु की महिमा का वर्णन किया है कि...
"यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।"

(इस मुद्दे पर कुछ विचार और जानकारियां भाग 02 में प्रसारित करूँगा। जो जल्द ही आपके पास होगा। बस कुछ ही समय में...)

(आप में से किसी भी महानुभव को मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मैं माफी चाहता हूँ। इस मुद्दे पर आपके विचारों का मैं सहर्ष स्वागत करता हूँ। आप अपने विचार मुझे मेरे व्हाट्सएप्प नंबर +91-9819715012 पर भेज सकते है।)

जय जिनेन्द्र! जैनम जयति शासनं!!

(आपसे सविनय नम्र निवेदन है कि आप इस मैसेज को अपने सभी जैन ग्रुप्स और लोगों को बिना किसी कांट-छाँट के भेजे, ताकि समाज इस मुद्दे पर विचार करके कुछ बदलाव ला सके। धन्यवाद!!)

No comments: