Wednesday 19 September 2018

गुलाबी नगरी की मेरी पहली यात्रा की कुछ स्मृतियाँ भाग 02.

आज भाग 02 में आप पढ़ेंगे...!
रात रुकने के बाद नई सुबह का सफर.

रात को एक गिलास दूध के साथ कुछ यादों को गोलकर पीने की इच्छा हुई। शाम का खाना नहीं खा पाया था, क्योंकि एक तो मैं ट्रैन में था और दूसरा शनिवार होने की वजह से मेरा व्रत भी था। रात को थोड़ी भूख महसूस हुई तो मैंने दूध पीना ज्यादा उचित समझा, क्योंकि रात के समय में अगर पीने के लिए कोई पोष्टिक चीज है तो वह है दूध और दूध पीने का सही समय भी रात का ही होता है। इसलिए मैंने एक गिलास दुख मंगाया और पीकर सो गया। मुझे सुबह समय से उठकर आगे के कार्य भी पूरे करने थे। इसलिए ज्यादा समय न खराब करते हुए जल्द ही सो गया और इस तरह मेरा पहला दिन अस्त हो गया और अब दूसरे दिन का इंतज़ार था, जो कि मेरे लिए कई यादगार लम्हों को लेकर आने वाला था।

रोज की तरह सुबह 05:45 बजे के अलार्म के साथ आंख खुली, पर थोड़ा आलस तो सुबह के समय हावी हो ही जाता है, तो मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। अलार्म बन्द करके फिर से सो गया तो 06:30 के बाद ही आंख खुली। सुबह-सुबह थोड़ी ठंड तो महसूस हो रही थी, पर आगे की कुछ यादों के रोमांचक अनुभव के आगे उसने भी घुटने टेक दिए। बस, फिर तो नयी सुबह, नया जोश वाली बात हो गयी और इसी जोश ने नित्य कर्मो से निवृत करवा दिया और नहाकर तैयार हो गया और घड़ी में देखा तो 07:00 से ऊपर बज चुके थे। अब मैं होटल से बाहर आया और मोबाइल में गूगल मैप को खोलकर सबसे पहले जयपुर के प्रसिद्ध और भव्य मंदिर श्री गोविंद देव जी का मंदिर की लोकेशन देखी और उसी अनुसार निश्चित दिशा की और अपने कदम बड़ा लिए।

कृमशः...

(आगे... मेरे कई रोमांचक और पहले अनुभवों का पिटारा) पढ़ते रहिए, गुलाबी नगरी की......... भाग 03.

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