Wednesday 19 September 2018

गुलाबी नगरी की मेरी पहली यात्रा की कुछ स्मृतियाँ भाग 04.

आज भाग 04 में आप पढ़ेंगे...! गुलाबी नगरी के बहुत ही रोमांचित कर देने वाले क्षण.

रेलवे स्टेशन के बाहर से बस द्वारा गोविंद देव जी का मंदिर
जा रहा था, तो रास्ते में "चाँद पोल" नाम का एक बड़ा सा गेट (दरवाजा) आया, जो शायद बहुत पुराना होगा (राजा महाराजाओं के जमाने का)। इसके बारे में जब मैंने बस ड्राइवर को पूछा तो उन्होंने बताया कि यह तो जब से जयपुर बना, तभी से ही है। मतलब यह एक ऐतिहासिक दरवाजा है, जो काफी पुराना है। इसे सड़क के बीचों-बीच इस तरह बनाया गया है कि सड़क पर चलने वाले साधनों को इसके नीचे से गुजरना पड़ता है। इस दरवाजे में दो बड़े-बड़े लकड़ी के दरवाजे (किवाड़) भी लगे है, जिन्हें यदि बंद कर दिया जाए तो यातायात रुक जाएगा।

चाँद पोल गेट से थोड़ा आगे चलने के बाद एक बहुत पुराना मार्किट है, जिसको देखने से ही यह पता चल जाता है कि यह बहुत पुराना होगा। इस मार्किट के बारे में एक सहयात्री से बात करने पर पता चला कि यह काफी पुराना मार्किट है, जिसका रंगाई-पुताई का कार्य अभी कुछ ही समय पहले हुआ है, जिस कारण यह थोड़ा चमक रहा है। इस मार्किट का नाम पूछने पर उसने "छोटी चौपड़" बताया। छोटी चौपड़ नामक मार्किट के आगे भी इसी तरह के कई मार्किट है, जिनके नाम गंगोरी बाजार, बड़ी चौपड़ आदि आदि है। एक जैसी आकृति में और एक ही रंग के यह मार्किट मुझे काफी पसंद आये। जिनमें आगे विभिन्न दुकानों के नाम भी एक सरीखे लिखे हुए थे। एक सफेद बॉक्स में काले रंग से एक ही फॉन्ट और साइज में लिखे नाम ऐसे लग रहे थे, जैसे सब एक ही कारीगर की कारीगरी हो। एक ही धागे में एक सरीखे मोतियों की तरह वे इतिहास के साथ-साथ एकता का भी संदेश दे रहे थे।

कृमशः...

(आगे... ऐतिहासिक धरोहरों के साथ आधुनिक तकनीक का शानदार संगम) पढ़ते रहिए, गुलाबी नगरी की......... भाग 05.

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