आज भाग 03 में आप पढ़ेंगे...! मेरे कई रोमांचक और पहले अनुभवों का पिटारा.
थोड़ा चलने के बाद मैंने एक साईकल रिक्शा वाले काका (जिनको देखकर ही उनकी उम्र का पता लगाया जा सकता है, उनकी उम्र 45 से 50 साल के करीब होगी।) को देखा तो मुझे साईकल रिक्शा में बैठने की इच्छा हो गयी। क्योंकि ऐसे रिक्शा उदयपुर में तो चलते ही नहीं और मैं भी कभी ऐसे रिक्शा में बैठा नहीं। आज पहली बार साईकल रिक्शा में बैठने का अनुभव लेना ही उचित समझा और उन काका से गोविंद देव जी मंदिर चलने को कहा। पर उन्होंने बताया कि गोविंद देव जी का मंदिर यहां से बहुत दूर है, जहां तक साईकल रिक्शा चलाना संभव नहीं है। पर उन्होंने बताया कि मैं आपको रेलवे स्टेशन के बाहर बस स्टेशन तक छोड़ दूंगा, जिसका किराया मात्र ₹30 होगा और वहां से गोविंद देव जी का मंदिर जाने की बस में भी बिठा दूंगा। तो यह बात मुझे भी पसंद आई।
मुझे भी पहली बार साईकल रिक्शा का अनुभव करना था, इसलिए मैं ज्यादा बहस न करके साईकल रिक्शा में बैठ गया और उन काका ने मुझे रेलवे स्टेशन के बाहर ही स्थित बस स्टेशन तक मात्र 5 से 7 मिनिट में ही छोड़ दिया और गोविंद देव जी का मंदिर के लिए सही बस में भी बिठा दिया। इस तरह जयपुर में पहले दिन की शुरुआत हुई, जो काफी कम समय की लेकिन बहुत ही अच्छी शुरुआत थी और ऊपर से पहली बार साईकल रिक्शा में बैठने का अनुभव बहुत ही रोमांचित करने वाला था, जो हमेशा याद रहेगा। आपको बता दु कि मैं जयपुर भी पहली ही बार आया हूँ और पहले सफर के पहले दिन की शुरुआत और पहली बार साईकल रिक्शा में बैठने का अनुभव..... सब कुछ पहली ही बार हुआ। मजा आ गया...!
कृमशः...
(आगे... गुलाबी नगरी के बहुत ही रोमांचित कर देने वाले क्षण) पढ़ते रहिए, गुलाबी नगरी की......... भाग 04.
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