Saturday 29 December 2018

कागज-कलम का जोड़ा........!!!📝

पिछले कुछ समय से मेरी लिखावट की कुछ लोग आलोचना तो, कई लोग प्रशंसा भी कर रहे है। अभी हाल ही में मैंने एक ग़ज़ल के माध्यम से मेरे आलोचकों को जवाब दिया था, पर इस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद जब मैंने मेरे प्रशासकों के बारे में सोचा, तो मन द्रवित हो उठा और अंतर्मन से एक आवाज महसूस हुई कि तू कितना निर्दयी है...? अपने आलोचकों के लिए धन्यवाद स्वरूप तेरे पास शब्द है और प्रशंसको के लिए कुछ भी नहीं...?? क्या यह तेरी कद्र करने वालों के साथ न्याय है...??? और सहसा अंदर से कुछ टूटने की आवाज आयी। ऐसा लगा.....! जैसे आज सबकुछ टूटकर बिखर गया हो। बस फिर एक सन्नाटे के साथ आँख से दो बूंद वह खारापन लिए पानी हमेशा-हमेशा के लिए मुझे अलविदा कह गया......!😖

बस इन्ही खयालों में खोया हुआ था कि सहसा सामने से एक आवाज महसूस हुई और मैं जैसे नींद से उठा और सामने देखा तो, जैसे मेरी कलम हाथ जोड़े निवेदन की मुद्रा में खड़ी कह रही हो कि अब प्रशंसकों के लिए भी मेरा इस्तेमाल कर मेरे जीवन को सफल कर दीजिए...!🙏😔

मैंने कलम को सीने से चिपका लिया और ऐसे महसूस हुआ, जैसे राम और हनुमान पहली बार मिलें हो। दोनों की आँख से अविरल आँसू बह रहे थे....!😞😢

मैंने अपनी कलम को प्यार से पुचकारा और उसे कागज पर आड़ी-तिरछी घुमाने लगा। अब कलम भी मुस्कुराती और सांप की तरह इतराती हुई चल रही थी और मैं उसे देखकर खुश हो रहा था, क्योंकि आज के शब्द मैं अपने प्रशंसकों के नाम जो करने वाला था...!🤓😊

इन स्वर्णिम शब्दों के लिए मैं मेरे सभी प्रशंसकों को तहे दिल से धन्यवाद देता हूँ......!!!🙏☺️
आलोचना तो, जीवन की शान होती है।
सब बढ़ाई ही करे, यह तो मुर्दे की पहचान होती है।।

बस लिखता हूँ, इसलिए जवाब भी मुझे नहीं देना है।
यह तो मेरे कागज-कलम का जोड़ा ही कर देता है।।

मुझसे ज्यादा तो आप में है, ज्ञान के भंडार।
इसीलिए तो आपने लिया, मेरे हुनर को संभाल।।

आपने समझा मेरी कागज-कलम को।
इसके लिए धन्यवाद देता है, "सिंघवी" सब जन को।।

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