आज भाग 08 में आप पढ़ेंगे...! मेरी जयपुर यात्रा की कुछ यादगार झलकियां.
मुख्य मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा सरोवर जैसा बना हुआ है, जिसके इर्द-गिर्द बहुत ही अच्छा बगीचा भी है और वही पर पक्षियों के लिए दाना-पानी की बहुत ही शानदार व्यवस्था भी है। मुख्य मंदिर के दर्शन के पश्चात मुख्य मंदिर से बाहर आकर पीछे सरोवर नुमा जगह और बगीचे को देखने का मन हुआ तो मैं उसी तरफ चल पड़ा। वहां जाने के लिए अलग से रास्ता बना हुआ है। मैं जब इस रास्ते से पीछे की तरफ गया तो वहां एक दरवाजा बना हुआ था, जिसके अंदर प्रवेश से पहले सुरक्षा यंत्र लगा था, जो सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण था। उस सुरक्षा यंत्र से गुजरने के बाद मैंने जब सरोवर नुमा बनी उस जगह में प्रवेश किया तो मेरे सामने बहुत ही शानदार नजारा था, उस सरोवर नुमा जगह में कई फव्वारे भी लगे थे, हांलाकि उसमें पानी नहीं भरा था, एकदम सूखा था। इसलिए फव्वारों का आनंद नहीं ले पाया, पर फिर भी बहुत ही शानदार नजारा था। मैं कुछ मिनिट वहां रूका और उस नजारे का आनंद लेने लगा। वहां शौचालय, स्नानघर आदि की भी बहुत ही शानदार व्यवस्था थी।
मैं ऐसे ही उस शानदार नजारे का आनंद लेने लगा कि तभी मेरी नजर वहां से दिख रहे एक छोटे से पहाड़ पर पड़ी। उस पहाड़ पर एक बहुत ही शानदार किला बना हुआ था, जो इतनी दूर से भी बहुत शानदार दिख रहा था। उस किले के बारे में जब मैंने वहां एक सुरक्षाकर्मी को पूछा तो उन्होंने मुझे उसका नाम "नाहर का किला" बताया। जिसका इतिहास भी बड़ा दिलचष्प है। वह किला दूर से तो एक ही दिखता है, पर वह 9 भागों में बना हुआ है, मतलब बाहर से तो वह एक ही है, पर अंदर से उसके 9 अलग-अलग भाग है। जो वहां के राजा नाहर सिंह जी ने अपनी 9 अलग-अलग रानियों के लिए बनवाएं थे। इसीलिए इसका नाम "नाहर का किला" पड़ा।
गोविंद देव जी का मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण जी की वास्तविक मूर्ति श्रीकृष्ण जी के प्रपौत्र वज्रनाभ ने लगभग 5000 साल पहले बनाई थी। जिसमें उनको अपनी दादी के कहे अनुसार लगभग तीन बार कोशिश करने के बाद सफलता मिली। इस मूर्ति निर्माण के समय वज्रनाभ की उम्र मात्र 13 साल थी।
गोविंद देव जी का मंदिर के पास एक तालकटोरा नामक स्थान है, जो कभी पानी से लबालब रहता था, पर अब यहां ऐसा नहीं होता। इसलिए कुछ समय पहले यहां एक विशाल सभा भवन बनाया गया, जिसमें कोई खंभा नहीं है। दुनिया के सबसे बड़े खंभ-विहीन सभा भवन के रूप में इसे गिनीज बुक में स्थान दिया गया है। इस भवन की लंबाई 119 फीट है। जो अपने आप में एक आश्चर्य भी है।
मैं गोविंद देव जी का मंदिर के सुबह सुबह दर्शन कर अपने आप को बड़ा ही आनंदित महसूस कर रहा था और वहां से आनन्द के साथ विदा लेकर फिर वही गुलाबी नगरी के विभिन्न बाजारों में से होता हुआ अपनी होटल की तरफ जाने के लिए बस में बैठ गया और गुलाबी नगरी के सफर का आनंद लेते हुए कुछ रंगीन सपनो में खो गया और न जाने बस कब मेरे गंतव्य तक पहुंच गयी? पता ही नहीं चला।
क्रमशः...
(आगे... मेरी जयपुर यात्रा का मुख्य उद्देश्य और यात्रा का दुःखद अंत)
पढ़ते रहिए, गुलाबी नगरी की......... भाग 09.
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