Tuesday 13 November 2018

एक ऐसा भव्य काफिला, जो अपने सौभाग्य को लेने चला..! भाग 04.

आज भाग 04. में आप पढ़ेंगे...! भीलवाड़ा से प्रस्थान के बाद नाथद्वारा में गुरु-मिलन और ममतामयी नारी शक्ति के दर्शन.

"अब तो आ गयी सुहागन मंगल घड़ियां।
2019 का चातुर्मास हो कड़ियाँ में बढियां।।"

गुरु के अमूल्य हीरे गुरु से मिश्रित आंसू के साथ विदा होकर अपनी अपनी बसों में बैठने लगे। कुछ गुरुभक्त अपने निजी वाहन से आये थे, वह अपने निजी वाहन से विदा हो रहे थे। गुरुभक्तों का यु कुछ देर में चले जाना शायद भीलवाड़ा की चहल-पहल पर मानो ग्रहण सा लग रहा था। जहां कुछ समय पूर्व शांति भवन में धमाल थी, रोनक थी, गगनचुम्बी आवाजें थी, वही अब ऐसा लग रहा था, मानो इस चहल-पहल पर किसी की बुरी नजर-सी लग गयी हो। चारो तरफ सन्नाटा था, शांति भवन भी मुँह लटकाए एक तरफ खड़ा-सा प्रतीत हो रहा था। शांति भवन को भी आज यह एहसास हो गया था कि समय बदलते समय नहीं लगता और गुरु के भक्तों की भक्ति का कोई तोड़ नहीं है। गुरुभक्तों ने भी आज भीलवाड़ा जैसे विशाल कस्बे को यह अहसास करवा दिया कि हम कुमुद गुरु के जन्म स्थान की माटी में जन्में और पले-बढ़े है। जिस माटी ने सुजानमल जैसे छोटे से बीज को कुमुद जैसा विशाल वटवृक्ष बना दिया। हम किसी से कम तो नहीं ही हो सकते है। हा, हमसे जरूर कोई कम हो सकता है। गुरुभक्तों ने भी जब शांति भवन की जलन देखी, तब उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

मुम्बई से आए गुरुभक्त मुम्बई की तरफ प्रस्थान कर रहे थे और बाकी स्थानों से आए गुरुभक्त अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे। कुछ गुरुभक्त भीलवाड़ा से नाथद्वारा (अहिंल्या कुंड) में विराजित गुरूवर रितेश मुनि जी म. सा. और गुरुवर प्रभात मुनि जी म. सा. के दर्शनार्थ नाथद्वारा की ओर प्रस्थान कर रहे थे, जिसमें मैं भी था।

कुछ घंटों के सफर के बाद हम नाथद्वारा पहुँचे। नाथद्वारा बस स्टेशन पर बस को पार्क करके हम अहिंल्या कुंड की तरफ पैदल ही चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद नाथद्वारा के बाजार से होते हुए हम एक स्थानक में पहुंचे। यह वही स्थानक था, जहां गुरुवर अपने मुखारविंद से अमृतवाणी सुना रहे थे। स्थानक देखने पर बहुत ही पुराना लग रहा था, उसकी डिज़ाइन भी बहुत पुरानी थी। पर मजबूती अभी भी बहुत ही अच्छी थी। हम सभी ने मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश किया और अपनी चरण पादुका को यथास्थान रखा और अंदर प्रवेश कर लिया। अंदर प्रवेश करते ही गुरूवर की अमृतवाणी सुनाई दी और गुरूवर के दर्शन हो गए। गुरूवर अपनी चिरपरिचित आवाज में अमृतवाणी फरमा रहे थे। जिससे कि एक बहुत ही आनंददायक वातावरण का निर्माण हो रहा था।

मैं भी गुरूवर को देखते ही अनायास ही गुरूवर की तरफ खींचता चला गया और गुरु के चरणों में अपने शीश को झुकाया कि गुरूवर ऐसे खुश हुए मानों उनका बहुत सालों का इंतज़ार आज खत्म हो गया हो। गुरूवर और मेरा यह मिलन आज भी याद आता है तो यू लगता है, जैसे यह अभी-अभी की बात है और मैं गुरूवर के चरणों में ही हूँ। उन्होंने मुझे अपने साथ ऐसे चिपका लिया कि मैं उस परिस्थिति का वर्णन भी नहीं कर सकता। उन्होंने जोर से मेरी पीठ थपथपाई।

गुरूवर अंदरूनी तो बहुत खुश हुए, पर कुछ ही समय में उन्होंने दिखावटी गुस्सा होते हुए मुझसे नाराजगी जताई और उनकी प्यारी और दिखावटी गुस्से वाली आवाज मेरे कानों में पड़ी..... प्रवीण! मैं तो तुझसे बात ही नहीं कर रहा हूँ। मैं बहुत नाराज हूँ तुझसे। जा मुझे कोई बात ही नहीं करनी तुझसे।

मैं गुरूवर की अंदरूनी भावना को समझ रहा था। गुरूवर की शिकायत के बावजूद मैं गुरूवर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा मुस्कुरा रहा था और गुरूवर की अंदरूनी मुस्कान को महसूस कर रहा था। अब मैं गुरुवर की शिकायत का क्या जवाब देता? समझ तो मैं भी गया था, कि गुरूवर क्या कहना चाहते थे? पर गुरूवर के सामने बोलने की बजाय गुरूवर की अंदरूनी खुशी को महसूस करना एक बहुत ही रोमांचक अहसास था, जिसका मैं आनंद ले रहा था।

तभी गुरूवर का एक जोर का झन्नाटेदार सवाल मेरे से टकराया कि प्रवीण...! बता मैं तुझसे क्यों नाराज हूँ? और इस सवाल के साथ जैसे मेरी नींद टूटी। मैं अपने आप को संभालता हुआ गुरूवर के सवाल का जवाब देते हुए बोला कि गुरूवर...! मैंने आपके कड़ियाँ से विहार के दौरान आपसे वादा किया था कि मैं ज्यादा नहीं तो एक बार तो आपके चातुर्मास के दौरान नाथद्वारा अवश्य आऊंगा और आपके दर्शन करूँगा। पर मैं अब तक नहीं आ पाया। समय की कमी के कारण ऐसा हुआ और फिर गुरूवर कुछ कहते, उसके पहले ही अपना बचाव करते हुए सफाई देने लगा कि गुरूवर...! और वही वादा आज पूरा किया है मैंने। आज आपके श्रीचरणों में आ गया हूँ। गुरूवर मेरी ऐसी तर्कपूर्ण बात सुनकर मुस्कुरा दिए और मुझे अपने सीने से लगा लिया। गुरु-मिलन का यह दृश्य वहां विराजित सभी श्रावक-श्राविकाएं देख रही थी कि यह कौन गुरुभक्त है? जिसके साथ गुरूवर इतने मस्त होकर बातें कर रहे है और इधर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था कि गुरूवर ने कैसे मुझे अपने सीने से लगाया और प्यार से झप्पी भी दे दी, जो मुझे आज भी याद आने पर मन रोमांचित हो उठता है।

गुरु-मिलन के बाद मैं गुरुवर को वंदन कर धर्मसभा में बैठे बाकी श्रावकों के साथ बैठ गया और गुरुवाणी का आनंद लेने लगा। यह धर्मसभा गुरूवर ने हमारे लिए ही आयोजित की थी। गुरूवर का यह प्यार और अपनापन देखकर अपने आप पर बड़ा गर्व हो रहा था कि ऐसे गुरूवर हमें मिलें। यह बहुत ही बड़ी पुण्याई का फल है।

कुछ समय गुरुवाणी श्रवण करने के पश्चात शाम के भोजन का समय हो गया था, तो गुरूवर ने हमें शाम का भोजन करने के लिए कहा और अपने मुखारविंद से महामांगलिक सुनाया। महामांगलिक के पश्चात हम गुरूवर को वंदन कर नाथद्वारा श्रीसंघ की तरफ से की गई शाम के भोजन की व्यवस्था का लाभ लेने वहां से कुछ ही दूरी पर भोजनशाला के लिए निकल पड़े। शायद भोजनशाला एक विद्यालय में थी और यह बिल्डिंग भी काफी पुरानी लग रही थी। वहां एक पुरानी घंटी (जो कि ट्रेन की पटरी के टुकड़े से बनी थी) लगी हुई दिखी, जिससे मैंने अंदाज लगाया कि यह एक छोटा विद्यालय है या था।

अहिल्या कुंड, नाथद्वारा में गुरुवर के वर्षावास में जो एक बात मुझे देखने को मिली, जो मैंने पहली बार किसी श्रीसंघ में देखी, वो यह थी कि वहां कार्यकर्ता या व्यवस्थापक के रूप में मात्र 5 लड़कियों को देखा। जो एक गौरवान्वित कर देने वाली बात भी है और समाज को एक संदेश भी, कि हम लड़कियां है तो क्या हुआ? हम भी लड़को से मुकाबला कर सकती है।

उन लड़कियों के नाम तो मुझे नहीं पता, पर उनका काम करने का तरीका बहुत पसंद आया मुझे। उनके द्वारा की गई व्यवस्था इतनी सुव्यवस्थित थी कि ऐसी व्यवस्था मैंने भी आज तक नहीं देखी। लड़को द्वारा की गई व्यवस्था से भी ज्यादा सुंदर और व्यवस्थित व्यवस्था थी उनकी। मुझे निजी तौर पर यह बहुत अच्छा लगा कि आज हमारे समाज की लड़कियां इतनी समझदार और जिम्मेदार है की पूरा श्रीसंघ उनके कन्धों पर जिम्मेदारी देकर निश्चिंत हो सकता है। यह बहुत ही खुशी और गौरवान्वित करने वाली बात है।

शाम के भोजन के बाद हम सभी गुरुभक्त नाथद्वारा से खुशी-खुशी अपने घर की तरफ निकलने के लिए अपनी बस की तरफ बढ़ गए और बस में बैठकर अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े। बस में बैठकर जब पूरी यात्रा के दृश्यों को बन्द आंखों से देख रहा था, तो मन में एक अलग ही अहसास था, एक अलग ही शुकुन था, एक अलग ही शांति थी। मन एक अलग ही रोमांचक दुनिया में गोता लगाता प्रतीत हो रहा था और मैं सपनों की दुनिया में खो गया।..................!!!!

समाप्त!

No comments: