Tuesday 13 November 2018

एक ऐसा भव्य काफिला, जो अपने सौभाग्य को लेने चला..! भाग 03.

आज भाग 03. में आप पढ़ेंगे...! वस्त्रों की नगरी भीलवाड़ा में भोले बाबा की दीक्षा जयंती के हर्षोउल्लास और गुरुवर के आशीर्वाद के साथ प्रस्थान.

"गुरुवर फरमा दो ज्ञान की लड़ियाँ।
अगला चातुर्मास हो पक्का कड़ियाँ।।"

गुरुभक्तों का एक भव्य काफिला गुरुवर के गगनचुम्बी जयकरों के साथ एक बहुत बड़े जुलुष के रूप में शांति भवन, भीलवाड़ा में प्रवेश करता है, जहां विराजित म. सा. का ओजस्वी प्रवचन चल रहा था।

यह आवाज जानी पहचानी थी, कानों को सुहानी और मन मयूर को नाचने पर मजबूर कर देने वाली थी। इस आवाज में एक अलग ही ओज, एक अलग ही तेज, एक अलग ही मोटिवेशन था। इस आवाज के कानों पर पड़ते ही मानों ऐसे लग रहा था कि हम प्रकृति की गोद में आ गए है, जहां झरने गुनगुना रहे है और विभिन्न पक्षी अपनी मधुर आवाज में कोई गीत गा रहे है। इस आवाज के कानों पर पड़ते ही मैं भी मंत्रमुग्ध होने से अपने आप को नहीं रोक पाया और उस आवाज की तरफ ऐसे खींचता चला गया, मानों मेरे ऊपर से अपना पूरा नियंत्रण ही समाप्त हो गया हो। मैं अपने आप को उस आवाज के अधीन कर चुका था और बस सब कुछ उस आवाज को सौंप चुका था।

यह आवाज खुद गुरु कुमुद के प्रिय शिष्य, ओजस्वी वाणी के साधक, साधना के पुजारी, प्रखर वक्ता, युवा संत, सेवा रत्न, युवा मनीषी श्री कोमल मुनि जी म. सा. "करुणाकर" की थी। जो नाम से बड़े ही कोमल लेकिन आवाज से बड़े ही ओजस्वी है, प्रखर वक्ता है। जिनकी आवाज में वह जादू है कि भरी सभा को एक ललकार में मंत्रमुग्ध कर दे।

शांति भवन में एक जोर का नारा गुंजा और एक बार तो गुरु करुणाकर भी देखते रह गए कि आज गुरु कुमुद के भक्त बहुत ही जोश के साथ गुरु कुमुद को लेने आये है। उनकी खुशी तो उनके मुस्कुराते चेहरे पर साफ झलक रही थी, जैसे किसी बड़े सेठ को कोई मूल्यवान हीरा कौड़ियों के दाम मिल गया हो और यह सही भी है। गुरु कुमुद को तो इतने मूल्यवान हीरे बहुत संख्या में एक साथ मिल गए। यह सभी भक्त गुरु कुमुद के मूल्यवान हीरे ही तो है। जिन्हें गुरु कुमुद अपनी ज्ञान रूपी तिजोरी में हमेशा सुरक्षित रखते है। उन्हें समय-समय पर अपने ज्ञान से सुरक्षा देते रहते है और भक्तों के गगनचुम्बी जयकारों से ही यह पता चल रहा था कि वे अपने गुरु के कितने बड़े दीवाने है...!?

शांति भवन में एक शांति के माहौल में सिर्फ गुरु करुणाकर की आवाज थी, जिसे खुद शांति भवन भी बड़ी तल्लीनता से सुन रहा था, पर अचानक एक गगनचुम्बी नारा सुनाई दिया और शांति भवन की तल्लीनता जैसे टूट सी गई। वह एकाएक नींद से हड़बड़ाकर उठा, तो देखता क्या है कि गुरुवर के हीरे गुरुवर की तरफ खींचते आ रहे है। शांति भवन भी असमंजस की स्थिति में आ गया कि आज तो गुरुवर मुझे त्याग देंगे, क्योंकि खुद शांति भवन को भी इस गुरुभक्त के काफिले के जोश और भक्ति को देखने के बाद अपनी गुरुभक्ति पर मानो शक सा होने लगा। पर एक तरफ कही न कही शांति भवन के भी मन में हर्ष था, अपने आप पर गर्व हो रहा था कि इतने बड़े गुरु का सान्निध्य मुझे मिला और आज तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। क्योंकि गुरुवर के साथ आज तो गुरुवर के इतने सारे बहुमूल्य हीरो की आव-भगत का सौभाग्य भी मुझे मिला है। यह बहुत ही बड़ी पुण्याई जगी है आज तो....!

असंख्य हीरे एक-एक कर गुरु के चरणों में ऐसे समर्पित होते गए, जैसे कोई जौहरी किसी अंगूठी में एक पंक्ति में हीरे जड़ता जाता है। ऊपर से देखने पर एक जैसे लाल साफे ऐसे दिख रहे थे, मानो कही किसी बगीचे में कई गुलाब एक साथ खिल गए हो।
कुछ देर के अशांत वातावरण के बाद शांति भवन में कुछ शांति हुई और गुरुवाणी फिर से कानों के मार्ग से होती हुई सीधे मन की मलिनता को साफ करने में जुट गई। इस वाणी को सुनने के बाद मन को जैसे शुकुन सा मिला। सब गुरुभक्त बड़ी तल्लीनता से गुरुवाणी का श्रवण करने लगे।

आज गुरुवाणी के साथ ही एक और सौभाग्य गुरुभक्तों की भक्ति में चार चांद लगाने वाला था और वह था.... गुरु कुमुद के साथ हर घड़ी कदम से कदम मिलाकर चलने वाले, भक्तों के अतिप्रिय, सरल और शांत स्वभाव के धनी, साक्षात शिव स्वरूप, सरलमना, भोले बाबा, गुरु पथिक की 65वीं दीक्षा जयंती का एक छोटा सा कार्यक्रम, जिसको भक्तों ने अपनी भक्ति से एक विशाल रूप दे दिया।
पता नहीं क्यों.....!? 28 अक्टूबर, 2018 का दिन बड़ा ही ऐतिहासिक और यादगार दिन था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। अगर कभी दीक्षा स्थल, कड़ियाँ का इतिहास लिखा जाएगा तो इस दिन को स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाएगा। शांती भवन के शांत वातावरण में एक ओजस्वी वाणी के बाद गुरुवर का गगनचुम्बी जयकारा......! यह सब एक बहुत ही रोमांचक माहौल के साथ चल रहा था, कि इसमें एक और रस गुल गया और वह रस था, गुरु भोले बाबा की 65वीं दीक्षा जयंती का। 28 अक्टूबर को गुरुवर भोले बाबा की दीक्षा जयंती का भव्य कार्यक्रम भी शांती भवन में प्रायोजित था। जिसने इस दिन के महत्त्व को कई गुना बढ़ा दिया।

गुरुवर के दीक्षा महोत्सव में भाग लेने वाले भक्त फूलें नहीं समा रहे थे। क्योंकि सरल स्वभावी, भक्तों के केंद्र बिंदु और गुरु कुमुद के हमेशा साथी रहे भोले बाबा अपनी दीक्षा जयंती के कार्यक्रम के पक्ष में कभी रहे ही नहीं। यह कार्यक्रम भी उनके लिए जैसे सरप्राइज था। इस छोटे से कार्यक्रम को इतना वृहद रूप मिल जाएगा, यह तो खुद गुरुवर ने भी नहीं सोचा था।

बहुत ही विशाल वटवृक्ष के समान दीक्षा जयंती कार्यक्रम के सम्पन्न होने के बाद गुरुभक्तों ने अपने गुरु का आशीर्वाद लिया और गौतम प्रसादी का लाभ लेने के बाद गुरुवर से विदाई लेने की रस्म अदा करने लगे। हर गुरुभक्त यही चाहता था कि गुरु के चरणों में सदा-सदा के लिए समर्पित हो जाए। पर कहते है न कि यह मौका भी बहुत पुण्याई के बाद मिलता है। शायद सभी गुरुभक्तों को ऐसा मौका नहीं मिलता। पर अगर ऐसा हो सकता तो गुरुभक्त गुरुचरणों को छोड़कर कही जाते ही नहीं।
गुरुभक्तों में एक तरफ खुशी और शांति का एहसास था तो दूसरी तरफ आंख से मानो आंसू ही निकलने वाले थे। कुछ खुशी थी तो कुछ बिछड़ने का गम भी था। पर जो सत्य है, उसे तो नहीं ही बदला जा सकता है। गुरुभक्त खुशी और गम के मिश्रित आंसू लेकर अपने आराध्य से विदा होने लगे। ऐसा लग रहा था, मानो आंधी आई और सबकुछ तहस-नहस कर चली गयी हो। शांति भवन का मन भी भर आया था, मानो वह अभी रो देगा। ऐसा लग रहा था, मानो वह रो-रोकर गुरुभक्तों को पीछे से आवाज दे रहा हो कि हे गुरुभक्तों...! मुझे छोड़कर मत जाओ। मै क्या करूँगा तुम्हारे बिना? रात को तुम्हारे बिना नींद कैसे आएगी मुझे? तुम्हारे बिना सबकुछ सुना हो जाएगा....

क्रमशः...

(आगे... भीलवाड़ा से प्रस्थान के बाद नाथद्वारा में गुरु-मिलन और ममतामयी नारी शक्ति के दर्शन)

पढ़ते रहिए, एक ऐसा भव्य काफिला, जो...... भाग 04.

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