Wednesday 20 April 2016

वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ और जैन नवयुवक मंडल, कड़ियाँ द्वारा समाजहित और नारिहित में लिए गए एक फैसले पर मेरी टिप्पणी...

भारतीय संस्कृति में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। नारी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। नारी को पूजनीय माना जाता है। नारी चाहे बेटी के रूप में हो, चाहे बहन के रूप में हो, चाहे बहु के रूप में हो या चाहे माँ के रूप में हो। वह हर रूप में पूजनीय ही है।

हमारे समाज में जब किसी के घर बेटी का जन्म होता है तो सबके मुँह से यही निकलता है कि उनके घर लक्ष्मी आई है या किसी की शादी होती है तो नयी दुल्हन को सब गृहलक्ष्मी के नाम से ही जानते है।

हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ "महाभारत" में भी कहा गया है कि जिस घर में नारी का सम्मान होता है, उस घर में साक्षात् लक्ष्मी का वास होता है। उस घर में कभी आर्थिक स्थिति ख़राब नहीं हो सकती।

भारतीय नारी ने भी समय-समय पर समाज के लिए प्रसंशनीय कार्य किये है। आज भारतीय समाज में पुरुषों के बराबर नारी का भी योगदान है।

आपको 1857 की ऐतिहासिक क्रांति तो याद ही होगी। जिसमें देशभक्ति की मिशाल रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लड़ते हुए भारत माँ की आन, बान और शान के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी की रानी के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है। उस देशभक्त नारी पर किसी कवी ने बहुत ही सुन्दर कविता भी लिखी है, जो आपको शायद याद होगी। उसके कुछ बोल.......
"खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।"

इतिहास में ऐसी कई वीरांगनाएँ और समाज सुधारक नारियाँ हुई है। जिन्होंने देश और समाज के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया है। जिसमें से कुछ के नाम मै आपको यहाँ बता रहा हूँ।
रानी लक्ष्मीबाई (झाँसी की रानी),
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी,
भारत की प्रथम महिला IPS श्रीमति किरण बेदी,
रानी पद्मावती आदि।
इनके अलावा भी बहुत सी नारियों ने अपना योगदान समाजहित में दिया है और आज भी दे रही है।
आजकल की नारी तो देश की रक्षा करने में भी पीछे नहीं है। बोर्डर पर हथियारों से लेस होकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा रही है।

ऐसी नारी जाति को मेरा नमन्।

अब मै जो कहना चाहता हूँ। उस मुख्य मुद्दे पर आता हूँ।
आप सब को शायद याद होगा कि आदर्श गाँव "कड़ियाँ" के वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ और जैन नवयुवक मंडल द्वारा समाजहित और नारिहित में कुछ वर्षों पहले एक बहुत बड़ा और सराहनीय फैसला लिया गया था। जो कि शायद मेरी जानकारी के मुताबिक 52 गाँव में सबसे हटकर और पहला फैसला होगा। जिसमें नारिहित को ध्यान में रखते हुए बहुत वर्षों पुरानी समाजिक बुराई के विरोध में आवाज उठाई और सर्वसम्मति से इस समाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ फैंका।

अब आपको याद आ गया होगा कि मै किस सामाजिक बुराई की बात कर रहा हूँ..??

मै बात कर रहा हूँ हमारे गाँव की बहुत पुरानी "परुषा प्रथा" की। जिसमें किसी भी समाजिक खाने में समाज की विधवा औरतें शामिल नहीं हो सकती थी। उनके लिए खाना उनके घर भिजवाया जाता था और वो भी नाप-तोल कर।

इसके पीछे शायद पुराने लोगों की यह सोच रही होगी कि विधवा औरतों को अपशकुन माना जाता रहा है। पहले के समय में विधवा औरतों को एक सुहागन औरत की तरह अधिकार प्राप्त नहीं थे। ये "परुषा प्रथा" उसी का एक रूप है। आज भी कई कामों में विधवा औरतों को शामिल नहीं किया जाता है।

लेकिन कड़ियाँ गाँव के जैन समाज ने "परुषा प्रथा" को बंद कर पूरी दुनिया को एक सन्देश दिया है कि रूढ़ीवादी सोच को छोड़कर हमें नारी को समाज में उसका हक़ देना होगा। उसको भी हमारे बराबर जीवन जीने का अधिकार है और वो अधिकार उससे कोई छीन नहीं सकता।

मै इंसानियत के नाते वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ और जैन नवयुवक मंडल, कड़ियाँ को दिल से धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने नारी शक्ति को पहचान कर उसका अधिकार उसे दिया। यह कार्य वाकई काबिले-ए-तारीफ है और मानव जाति के लिए एक मिशाल है।

जय जिनेन्द्र।

आपके समाज का एक सदस्य:
श्री पी. सी. सिंघवी,
कड़ियाँ।
+91-9819715012.

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