Sunday 6 March 2016

संवत्सरी की ऐतिहासिक जानकारी...

   "जैन धर्म में एकता की स्थिति"....... नामक शीर्षक से मैंने कुछ समय पहले एक पोस्ट की थी मेरे इस ब्लॉग पर।

   उसमें मैंने जैन धर्म में एकता की कमी पर अपने विचार व्यक्त किये थे। उसमें मैंने जैन धर्म के मुख्य महापर्व  पर्युषण और संवत्सरी के उदाहरण देकर ये समझाने का प्रयास किया था कि अपने जैन धर्म में एकता की बहुत कमी है।

   आपने उसे ध्यान से पढ़ा हो तो आपको याद होगा कि मैंने उसमें ये भी कहा था कि मैंने इस बारे में एक जैन मुनि जी से भी विचार-विमर्श किया। अब क्या विचार-विमर्श किया??? ये तो आप मेरे उस ब्लॉग में पढ़ ही चुके है।

   अब आप ये सोच रहे होंगे कि जब उस ब्लॉग में सब बता दिया तो ये ब्लॉग लिखने की क्या जरुरत थी???

   अब आपके इसी सवाल का जवाब मै यहाँ देने का प्रयास कर रहा हूँ। आपसे विनम्र निवेदन है कि मेरा प्रयास आपको कैसा लगा??? ये आप मुझे बताकर मुझे आगे के लिए गाइड करे।

   अब मै अपने मुख्य विषय पर आता हूँ।

   मै आपको एक खुशखबरी सुनाना चाहता हूँ और वो ये है कि मुझे कुछ हद तक जैन धर्म के महापर्व पर्युषण और संवत्सरी का इतिहास पता चला है। जिसे मै पूर्ण रूप या यु कहु कि पूरा सही होने का दावा तो नहीं कर सकता। पर मुझे उसमे कुछ सही लगा। इसलिए मै आपके साथ बाँट रहा हूँ। मै आपको यहाँ एक बात ओर बता दू कि मेरा इस विषय पर शोध जारी है। जो मै अविरल रखूँगा।

संवत्सरी का इतिहास: (जो मुझे पता चला है)

५ परमेष्ठी है,
५ कल्याणक है,
५ इन्द्रियां है,
५ तत्व है,
५ ज्ञान है,
५ उंगलियां है...

सभी जगह ५ की महत्ता है।

   वर्षो पहले संवत्सरी भी ऋषिपंचमी (भाद्रपद सुदी ५) को ही होती थी। क्योंकि चातुर्मास के ५०वें दिन ही संवत्सरी महापर्व मनाने का विधान है। (५० में भी ५ की संख्या आ ही गयी है)

   संवत्सरी किसी कारणवश ४९वें दिन हो सकती है पर ५१वें दिन नहीं हो सकती।

   इसी कारण श्रीकालकाचार्य ने राजा के शोकग्रसित होने से संवत्सरी ४९वें दिन की और अगले साल ही वो कालधर्म को प्राप्त हुए।

   उनके शिष्यों ने ४९वें दिन को ही आगे के लिए मान्यता प्रदान कर दी और आज तक वो भूल चली आ रही है।

पर्व तिथि है: १, ५, ८, १४, १५.
(यहाँ पर भी पर्व तिथि ५ ही है)

जैनों में चौथ पर कोई भी पर्व तिथि आती है क्या???

   ध्यान रहे संवत्सरी ८ दिन की इसलिए है कि ८ कर्मों को खपाया जाए और पंचमी को इसलिए है कि पांचवे ज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जाये।

   ये इतिहास मैंने जहा पढ़ा, वहां से copy किया है। इसमें मैंने मेरी तरफ से एक शब्द भी नहीं जोड़ा है और ना ही घटाया है।

   ये मैंने जहा से पढ़ा। वहा का लिंक भी मै आपको शेयर कर रहा हूँ। जिससे आप स्वयं इस जानकारी की पुष्टि कर सके।
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=818532748293431&id=100004101390697&st=10

   इसमें मुझे कुछ अच्छा लगा। इसलिए आपसे बांटने का मन हुआ और मन की इच्छा आपके आशीर्वाद से पूरी की।

   मुझे इस बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी, इसलिए मुझे ये थोड़ी सी जानकारी भी "डूबते को तिनके का सहारा" जैसी लगी और मैंने इसे संभालकर आप तक पहुँचाने का निश्चय कर लिया। मै आगे इस जानकारी की सत्यता की भी खोज कर रहा हूँ।

   मै आपसे भी विनम्र निवेदन करता हूँ कि यदि आपको इस पोस्ट की जानकारी में कोई बात गलत या सही लगे, तो मुझे comments करके बताये और इस विषय से सम्बंधित कोई भी जानकारी आपके पास हो, जो चाहे आधी-अधूरी या सटीक ना भी हो, तो भी मेरे साथ बांटने की कृपा करे। जिससे मुझे इसके इतिहास का पूरा पता चल सके और मै मेरे मिशन में ओर आगे बढ़ सकु और अपने धर्म के बारे में ऐतिहासिक और सच्ची जानकारियां सबके साथ बाँट सकु।

   आपके सकारात्मक सहयोग की अपेक्षाओं के साथ.....

।।जय जिनेन्द्र।। ।।जैनम् जयति शासनम्।।

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