Saturday 14 January 2023

क्या हम यह दान (धर्म) कर रहे है या दान-पुण्य की आड़ में आडंबर/दिखावा (अधर्म)...?

अरे जैन भाइयों, हम यह कौनसा धर्म कर रहे है? ऐसा दान करना हमने कहा से सीखा? हम दान के नाम पर कोरा दिखावा कर धर्म की झूठी बातें करना कहा से सीख गए? क्या यही जैन धर्म की परिभाषा है?

और अगर यही जैन धर्म की परिभाषा है, तो ऐसे धर्म को धर्म न कहकर अधर्म कह दे, तो ज्यादा सटीक होगा। ऐसे अधर्म को तो आग लगा देनी चाहिए और समय-समय पर प्रकृति ने ऐसे अधर्म में आग लगाकर इसका नाश भी किया है। जो हम सभी जानते है।

एक कड़वी हकीकत तो यह है कि, हम दान पुण्य करने नहीं, बल्कि फ़ोटो खिंचवाने जाते है। क्योंकि वो फ़ोटो हमें अपने व्हाट्सएप्प स्टेटस पर डालकर लोगों में यह बताना होता है कि, हम कितने बड़े दानी, समाजसेवक और धर्मनिष्ठ श्रावक है? यह एक स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है। जो युवाओं को अधर्म की और खींचता चला जा रहा है।

अरे, हम अपने स्वधर्मी कमजोर भाई को तो संभाल नहीं पा रहे। हम हमारे ही समाज के कमजोर तबके को साथ लेकर चल नहीं पा रहे और स्टेटस डालते है, दान-पुण्य करते हुए। ऐसे दान-पुण्य का क्या लाभ? जब आपका अपना स्वधर्मी भाई तो भूखा मर रहा और हम दान उन्हें दे रहे, जो हमें या हम उन्हें जानते तक नहीं।

अब कई भ्रष्ट नेता मानवता की दुहाई देंगे...!
उन्हें कभी पूछो कि, तुम्हारी कमाई कितने लोगों के खून चूसने के बाद हो रही है? दान का मतलब होता क्या है? दान देने के धार्मिक सिद्धांत या नियम क्या है? ऐसे समाज को दीमक की तरह खोंखला करने वाले ये दिग्भ्रमित नेता कभी इन सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे। बल्कि वे अपना लॉजिक लगाकर अपनी बात सही साबित करते नजर आएंगे। मतलब वे सही और जिनवाणी गलत...! कभी-कभी तो मुझे आश्चर्य होता है।

दान की धर्मानुसार परिभाषा:
भारत का दान-पुण्य में भी एक बहुत बड़ा और स्वर्णिम इतिहास रहा है। दानवीर कर्ण और दानवीर भामाशाह जैसे महापुरुषों ने इस भारतभूमि को गौरवांवित किया है। जब ये वीर दान देते थे, तो इनकी आंखें झुकी हुई, इनके एक हाथ से दान दिया जाता था, तो दूसरे हाथ को भनक तक नहीं होती थी। इनका सीना दान देते समय कभी चौड़ा नहीं होता था, इनको कभी घमंड नहीं होता था। इनको आडंबर के साथ दान देते हुए कभी किसी ने नहीं देखा। इसलिए वे इतिहास रच गए, अमर दानवीर हो गए।

हम जो धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे है न। इसका परिणाम बहुत बुरा होने वाला है। इसका परिणाम जब सामने होगा न, तो धर्म से आने वाली पीढ़ियों का विश्वास उठ जाएगा और धर्म का नाश हो जाएगा। फिर यह मत कहना कि, प्रकृति यह क्या कर रही है? जमाना बदल गया। दुनिया विश्वास करने लायक नहीं रही। यह तो पांचवे आरे का असर है।

क्योंकि हमें आज जो मिल रहा है, वह पुराने कर्मों का फल है और जो भविष्य में मिलेगा, वह वर्तमान कर्मों का फल होगा। यह बात गांठ बांध लेना।

(भारत भर में एक दिन के कई ढोंगी दानवीर आपको 14 और 15 जनवरी को दिख जाएंगे। कई कार्यक्रम देखने को मिल जाएंगे, जिसमें ये ढोंगी नाचते हुए मिलेंगे।)

अब मैं थोड़ा दूसरे मुद्दे पर आता हूँ। *हम मकर संक्रांति पर ही दान-पुण्य क्यों करते है? मकर संक्रांति के 02 दिन पहले या 04 दिन बाद में क्यों नहीं करते?*

क्योंकि मकर संक्रांति के दिन दिया गया दान या किया गया पुण्य सौ गुना से भी ज्यादा फल देता है। मतलब हम कम मेहनत में अधिक फल चाहते है और इसे चाहना गलत भी नहीं है। जब हमें धर्म ने ही ऐसी व्यवस्था दी है, तो इसका लाभ जरूर लेना चाहिए और हम ले भी रहे है। जो बहुत अच्छी बात है।

अब सवाल फिर वही, हम पुण्य के नाम पर पाप तो नहीं कर रहे?

बिल्कुल पाप ही तो कर रहे है। क्योंकि मल मास के एक महीने के दौरान तो हमने कोई दान-पुण्य नहीं किया। क्योंकि मल मास में ऐसा कुछ नहीं किया जाता। फिर हम मल मास के अंतिम दिवस ऐसा क्यों कर रहे है? जबकि अब मकर संक्रांति 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी हो गयी है। मतलब हम जो 14 जनवरी को दान-पुण्य कर रहे है, वह मल मास में ही कर रहे है। तो वह पुण्य अर्जन की बजाय पाप अर्जन हुआ न।

क्या इतनी छोटी-छोटी बातें भी हमारे दिमाग में नहीं बैठ रही? क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग धर्म का त्याग कर राजनीति और भ्रष्ट तंत्र का आदी हो चुका है। हम सत्य से मुँह क्यों छिपाते फिर रहे है?

हमें सत्य जानने का पूरा अधिकार है, पर साथ ही उस पर चलने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। सिर्फ सत्य की बातें कर लेने मात्र से दुनिया बदल नहीं जाएगी। सही में बदलाव आपके व्यवहार से ही सम्भव है।

अब मेरे कुछ सवाल, जो बहुत छोटे है, लेकिन बड़े तीखें और सोचनीय है। जिनके जवाब यदि आपने सोच लिए, तो आप बहुत बड़े पाप से बच जाएंगे...

01) क्या आप सच में यह सभी दान-पुण्य पुण्य अर्जन के लिए कर रहे है या सिर्फ किसी के कहने पर जबरदस्ती भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे हो?

02) क्या आपके गुरु या गुणीजन हमें इन छोटे-छोटे ज्ञान से हमारी जिज्ञासा शांत करते है या वे भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इनमें मददगार है?

03) क्या हमें समाज में कुकुरमुत्ते की तरह भरमार से उग आए समाजसेवक नेता ऐसे दिखावें के दान-पुण्य के लिए उकसाते हुए दिखाई देते है?

04) क्या हमें इसका फ़ोटो खींचने के अलावा कोई फायदा आज तक मिला है या ये समाज में कुकुरमुत्ते की तरह भरमार से उग आए समाजसेवक नेता बड़े बनते जा रहे है?

05) क्या धर्म के नाम पर ये समाज में कुकुरमुत्ते की तरह भरमार से उग आए समाजसेवक नेता समाज के हम जैसे छोटे श्रावक-श्राविकाओं को पद-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान पाने के लिए सीढ़ीयों की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रहे?

मुझे एक सनातनी संत ने एक बार एक बहुत छोटी, लेकिन बड़ी सारगर्भित बात बोली थी कि, "प्रवीण, इंसान दो रोटी खाता है न, तो दो रोटी जितनी अक्ल तो होनी ही चाहिए।" (मतलब आप प्रकृति की सबसे अनमोल कृति और बुद्धिमान है, तो किसी के बहकावे में क्यों आते है? अपनी बुद्धि से सही-गलत या पाप-पुण्य का सोच-विचार नहीं कर सकते क्या?)

(किसी को मेरी बात अखरे या सही नहीं लगे, तो सत्य की खोज करें और मेरे विचारों के अलावा कोई सत्य मिल जाएं, तो मुझे भी अवगत करवाएं। ताकि मेरा ज्ञान भी उच्च से उच्चतम शिखर की ओर बढ़ सके।)

जय जिनेन्द्र...!

Thursday 17 November 2022

एक लड़खड़ाती आवाज, जिसने अचानक मेरी बैचेनी बढ़ा दी...! (भाग 01)

आज (17 नवंबर, 2022) मैं विरार से ट्रेन (सौराष्ट्र एक्सप्रेस) द्वारा सूरत जा रहा था। ट्रैन दहानू रोड कुछ देर रुकी और फिर अपने गंतव्य की ओर बढ़ गयी। कुछ ही देर में उमरगांव रोड आने वाला था। ट्रैन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और मैं अपनी सीट पर बैठा बाहर के प्राकृतिक नजारों को देख रहा था।

चूंकि मैं लोकल डिब्बे में सफर कर रहा था, तो इस डिब्बे में फेरीवाले बहुत से लोग आ-जा रहे थे। कोई पानी बेच रहा था, तो कोई वड़ा पाव और कोई इडली-चटनी और इस तरह आवाजे चल रही थी। कुछ आवाजे बेचने वालों की, तो कुछ खरीददारों (सवारियों) की।

इसी बीच अचानक से एक आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। मुझे कुछ अजीब लगा और इस आवाज के कर्णपटल से टकराते ही मेरे अंदर तक एक हल्का-सा कम्पन्न महसूस हुआ और मैं अनायास ही इस आवाज की तरफ खींच गया और इस आवाज को निहारने का एक असफल प्रयास-सा करने लगा।

अब आप सोच रहे होंगे कि, "ऐसा क्या था इस आवाज में और आखिर यह आवाज थी, किसकी?"

बस, यही रहस्य मुझे भी खाएं जा रहा था। मेरा भी इस आवाज को लेकर कौतूहल बढ़ रहा था। एक सेकंड मानों, एक घंटे जैसा प्रतीत हो रहा था और इतने में ही मेरी नज़र...

देखो, बढ़ गया न कौतूहल...!? सांस अटक-सी गयी न...!? बैचेनी बढ़ गयी न...!?😳

अब श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए इसकी गहराई को महसूस करो। बस यही साधना है, योग और ध्यान साधना...!!!

(नज़र किस पर पड़ी? यह अगले एपिसोड में...😀)

Wednesday 12 October 2022

वाणियां, ने गु खाणियां

शीर्षक पढ़कर शॉक लगा न, गुस्सा आया न...!

तो सोचो, मुझे एक अजैनी ने लगभग 45-50 लोगों के बीच में जब यह बात बोली, तो मुझे कितना गुस्सा आया होगा? मुझे कितनी बड़ी इन्सल्ट महसूस हुई होगी? मेरा मुँह कैसा हुआ होगा? सोचो...!!!

अब मैं अपने साथ घटित घटना के बारे में जिक्र करना चाहूंगा। जो कुछ इस प्रकार थी...

हुआ यूं कि, मैं एक समूह में किसी जगह (जगह या व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लूंगा, क्योंकि यह मेरे सिद्धांत के अंतर्गत नहीं है।) मैं बैठा था। जिसमें लगभग 45-50 लोग बैठे थे। चूंकि मैं जैन तो हूँ, पर सनातन धर्म से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हूँ। इसलिए मेरे अलावा वहां लगभग सभी सनातनी ही थे। हम विभिन्न धर्मों, राष्ट्र और जातिवादी सोच पर बातचीत कर रहे थे। वहां बैठा हर कोई हर मुद्दे पर खुलकर बात कर रहा था। जिसको जो विचार सही लग रहा था, उसका वह खुलकर समर्थन भी कर रहा था और इस तरह हमारी बातचीत आपस में बहस और हंसी-मजाक के साथ चल रही थी।

मेरी एक आदत है कि, मैं सामने वाले को बोलने देता हूँ और उसकी सुनकर फिर अपने विचार रखता हूँ। (इसे आप आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदत भी कह सकते है।) तो इस आदत के अनुसार मैं भी सुन रहा था।

अब इतने लोग आपस में किसी मुद्दे पर बात करें और मैं ज्यादा देर चुप रह जाऊं, ये तो आपको पता ही है कि, मेरे लिए नामुमकिन है। तो मैं भी अनायास ही या आदतानुसार उस बहस और हंसी-मजाक के माहौल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

अब जब वहां बैठे सभी लोग सनातन धर्म की प्रशंसा और बाकी धर्मों की बुराई कर रहे थे, तो मैं कहा पीछे रहने वाला था। मैंने भी अपने धर्म को सनातन धर्म का हिस्सा बताकर प्रशंसा में एक-दो बातें बड़े आत्मविश्वास और गर्व के साथ कह दी।

जैसे... हमारे जैन धर्म में तो एकेन्द्रित जीव तक की रक्षा को तवज्जो दी गयी है। हमारा धर्म बड़ा बारीकी तक है। हमारे जैनियों की जनसंख्या देश में सिर्फ 01% है, पर हम सबसे ज्यादा टेक्स भरते है। हमारे जैन धर्म के सिद्धांतों को विज्ञान ने भी सराहा है। हमारी परम्पराराएं (नियम) Scientifically Proofed है। हमारे धर्म में ये है, वो है आदि-आदि...!

[अब मेरी जैन धर्म के प्रति प्रशंसा करते समय यह स्थिति हो गयी कि, मैं अपने आप को जैनी बताकर बड़ा गौरवान्वित महसूस करने लगा। मेरे चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट थी। कुछ समय के लिए तो मुझे ऐसा लगा कि, मैं बाकियों से बहुत उच्च हूँ, नायक (Leader) हूँ।]

यह सब चल ही रहा था कि, एक सनातनी भाई (जो कि धर्म का अच्छा ज्ञान रखता है और बड़ा सुलझा हुआ व्यक्ति है।) ने मुझे सबके बीच में अचानक एक बात बोली...

"वाणियां, तो गु खाणियां वे...!"

(सुनते ही मेरे साथ-साथ वहां बैठे हर सदस्य के मुँह का रंग उड़ गया। हम सभी शॉक हो गए और मेरी हालत यह हो गयी कि, "काटो तो खून नहीं।" मेरा मुँह फीका पड़ गया और मुझे इतनी बड़ी इन्सल्ट महसूस हुई कि, उस अनुभूति का शब्दो में वर्णन किया ही नहीं जा सकता।)

मैं कुछ ही सेकंड की चुप्पी के बाद अपने आप को संभालकर और लगभग उस व्यक्ति पर हावी होते हुए ललकारने जैसी आवाज में गरजा कि, "आप यह बात किस आधार पर कह सकते है?" (उस समय सभी के हावभाव मेरे समर्थन को दर्शा रहे थे और यह बात हम दोनों ही बहुत अच्छे से समझ गए थे।)

वह व्यक्ति बड़ा धीर-गंभीर और शांति के साथ बड़ी सुलझी हुई भाषा में बोला, "प्रवीण, तू और बाकी सदस्य मेरी बात से शॉक हो न...! तेरा दिल दुःखा हो, तो मुझे माफ़ कर दे। वो तेरे जैन धर्म में कहते है न... मिच्छामि दुक्कदम्...! पर आज तू सत्य से मुँह मत फेर।"

"चल, मैं अपनी बात साबित करके तुझे सत्य से अवगत करवाता हूँ और वह भी जैन धर्म की मर्यादा में जैन धर्मानुसार। तू तो श्रमनसंघ के मेवाड़ सम्प्रदाय से है न। चल, मैं तेरे को तेरे ही सम्प्रदाय का बताता हूँ। फिर तो तू भी मान लेगा न मेरी बात...?"

मैंने और बाकी सदस्यों ने लगभग शांति का अनुभव करते हुए उसकी बात के समर्थन में सिर से इशारा कर दिया।

अब उसने जो बोला, वह तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसकी बात अक्षरशः सही और जैन धर्मानुसार तर्कपूर्ण भी थी।

उसने कुछ तर्क रखें, जो इस प्रकार थे...

तर्क संख्या 01.
जैन धर्म में साधु-साध्वी जी के देवलोकगमन पर उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार देवलोकगमन के 48 मिनिट के बाद तक करना जैन धर्मानुसार धर्म-सम्मत है और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर में जीव की उत्पत्ति होना बताया गया है। फिर उस पार्थिव शरीर को जलाने से उसके अंदर के जीव भी साथ में जलते है और दोष लगता है, जो अक्षम्य पाप है।

अब प्रवीण, तू मुझे बता कि, इस आगमानुसार नियम को कितने जैनी आज फॉलो करते है?

यह नियम तो छोड़, दो-दो दिन तक उस पार्थिव शरीर को इधर से उधर ले जाया जाता है। यहां दर्शन, वहां दर्शन... डॉल यात्रा आदि के नाम पर कितना पाप हो रहा है? कभी सोचता है क्या, तेरा अहिंसक जैन समाज?

उदाहरण के तौर पर तू अपने ही गुरुदेव के अंतिम संस्कार को देख लें।

असंख्य जीवों को जिंदा जलाने वाले समाज को तू अहिंसक कहता है? क्यों, यही है अहिंसक होने की परिभाषा?

तर्क संख्या 02.
जैन धर्म में आडंबर के लिए कोई जगह नहीं है। पर आज जैन धर्म में ही सबसे ज्यादा आडंबर हो रहा है। क्या यह जैन धर्म-सम्मत है? क्या यह जैन धर्म के पवित्र ग्रन्थ आगम के अनुसार है?

और तेरे आराध्य गुरुदेव सौभाग्य मुनि तो आडंबर के कड़े विरोधी रहे है। यह बात तो तुझे भी पता है न। फिर आज उनके ही नाम पर कितना आडंबर हो रहा है? तू खुद देख लें।

मतलब यह बात तो वही हो गयी कि, बाप ने धर्म को बचाने अपनी जिंदगी खपा दी और आज बेटे उसी धर्म को भरे बाजार में नीलाम कर आएं।

तर्क संख्या 03.
मुझे एक बात समझ नहीं आयी। गुरु की पुण्यतिथि पर खुशियां मनाई जाती है या दुःख जताया जाता है?

हमारे घर में घर का एक पालतू जानवर भी मर जाये, तो उस दिन हमारे घर में चूल्हा नहीं जलता और सभी पारिवारिक सदस्यों का मुँह उतरा हुआ रहता है। घर सुना-सुना सा हो जाता है।

अब सोचो, जैन धर्म के गुरु के देवलोकगमन से समाज को कितनी बड़ी क्षति होती है? कितने दुःख की बात है? पर यहां तो नाच-गान और हंसी-खुशी मनाई जाती है।

अब प्रवीण, तू ही बता। क्या ये सत्य नहीं है? क्या किसी साधु-साध्वी के देवलोकगमन पर खुशियां मनाना आगम-सम्मत है?

तर्क संख्या 04.
प्रवीण, तेरा जैन समाज पैसे या संस्कार के मामले में बाकी सभी से बहुत उच्च कोटि का है न। फिर मुझे बता, जब सौभाग्य मुनि का अंतिम संस्कार पूर्ण भी नहीं हुआ था और तेरे समाज के वही संस्कारी लोग खाने पर टूट पड़े थे। यह वाकया तो तेरे सामने ही हुआ न...! तू खुद इस बात का गवाह है। तो क्या इसे ही तू संस्कार कहता है? क्या यही जैनियों के संस्कार है?

अगर ये ही जैनियों के संस्कार है, तो भूखे-नंगों में और जैनियों में क्या फर्क है? बता तो...!

बाकी तो तुम लोग उपवास, बेला, तेला, अट्ठाई और न जाने क्या-क्या तपस्या करते रहते हो। फिर 02 घंटे नहीं खाते, तो क्या मर जाते? बोल...!

तर्क संख्या 05.
प्रवीण, अब और सुन... तेरे जैन साधु-साध्वी मोबाइल आदि आधुनिक उपकरण इस्तेमाल करते है। लेकिन सामायिक में सेल वाली घड़ी का भी इस्तेमाल नहीं करने देते। तो मुझे बता, वह साधु-साध्वी कैसे? क्या यह भी आगम के अनुसार सही है?

तर्क संख्या 06.
आज तेरे समाज के संस्कारों की बात करूं, तो देश में सबसे ज्यादा विधर्मियों के साथ जैन लडकियां ही भाग रही है और तेरे समाज का इस विषय पर कोई ठोस उपाय आज तक नहीं सुना। दूसरी तरफ तेरे जैनी लड़के 30+ की उम्र में कुंवारे डोले खा रहे है और सबसे बड़ी बात, तेरे समाज की लड़कियां जैन लड़को से शादी करने की बजाय विधर्मियों के साथ भागना पसंद कर रही है। इसे तू संस्कार कहता है?

आज सबसे ज्यादा अश्लीलता तेरे जैनियों ने फैलाई है। तेरे जैन समाज की लड़कियों के कपड़े देखकर तो तू यह फर्क ही नहीं कर सकता कि, Bar Girls और तेरे समाज की सुसंस्कारी लड़कियों में फर्क क्या है? क्या जैन समाज इसे ही आधुनिकता कहता है?

क्या इन्ही संस्कारो पर तुम जैनी इतना फुदकते हो?

तर्क संख्या 07.
जैनियों के सुसंस्कृत समाज की भुक्कड़ता देखनी हो, तो जैनियों के किसी सार्वजनिक भोजन में चले जाओ या प्रभावना बंट रही हो, वहां चले जाओ।

ऐसे स्थान पर तो लोग ऐसे ऊपर पड़ते है, जैसे वहां कोई अन्नकूट महोत्सव चल रहा हो। महिलाएं तो लाज-शर्म खूंटी पर टांगकर ऐसी पहलवानी करती नजर आती है कि, बस, पूछो ही मत।

प्रवीण, क्या यह बात सही नहीं है? इस पर तो तूने खुद भी एक लेख लिखा है। (https://mypersonalthinkmynewblock.blogspot.com/2020/02/blog-post.html) क्योंकि इस तरह की असभ्यता ने तो तुझे भी अंदर तक हिलाया है, रुलाया है।

अब तो तू भी मानता है कि, मैंने सही बोला...???
और भी कई उदाहरण दे सकता हूँ। बाकी तो तू खुद ही समझदार है।

(और प्रवीण, एक बात मैं तुझे फिर से याद दिला दूं कि, मैंने जो बातें कही है न। वो सब आगम के अनुसार कही है और मैंने कभी आगम पढ़ने की बात तो छोड़, देखे भी नहीं है। यह तो मुझे एक जैन संत ने ही बताया था। मतलब यह सब मैं नहीं कह रहा, बल्कि तेरे अपने संत और पवित्र ग्रंथ आगम खुद कहते है। बाकी मैं न तो किसी धर्म का विरोधी हूँ और न ही किसी धर्म के ऊपर छींटाकसी करना पसंद करता हूँ। पर हा, गलत परंपराओं का विरोधी जरूर हूँ।)

अब क्या तेरे जैन संत और पवित्र ग्रन्थ आगम भी झूठे है? क्या अब भी तुझे लगता है कि, जैन समाज सुसंस्कारी समाज है?

मुझे एक बात बता, जो जैन समाज अपने तीर्थंकरों का नहीं हो सका, उनके उपदेशों का नहीं हो सका। उस जैन समाज के लिए तू कहता है कि, देश में सबसे बड़ा योगदान जैनियों का है...! बहुत आश्चर्य की बात है, यार...।

कभी समय मिलें न, तो अपने गिरेबान में झांककर देखना, तुझे शर्म आएगी अपने जैनी होने पर। क्योंकि सही मायनों में तुम जैनी कहलाने के लायक ही नहीं हो।

मैं अब उसका विरोध किस मुँह से करता? चूंकि वह सही ही था। मैंने भी उसको मन ही मन प्रणाम करते हुए उसकी बात स्वीकार कर ली। क्योंकि बात तो उसकी सही ही थी।

(यदि किसी जैनी को इस विषय पर कोई भी बात करनी हो, तो सीधे मुझसे बात करें। मेरा निजी मोबाइल क्रमांक +91-9079103901 है। जिस पर आप कॉल भी कर सकते है और व्हाट्सएप्प भी...। इस लेख का उद्देश्य किसी भी जैन अनुयायी के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि समाज सुधार की दृष्टि से यह लेख लिखा गया है। यदि फिर भी किसी के दिल को ठेस पहुंची, तो लेखक की तरफ से बारम्बार क्षमायाचना...!)

Friday 18 February 2022

बड़े-बड़े बैंक्स की घटिया सर्विस.

यह प्राइवेट सेक्टर के सबसे बड़े बैंक ICICI Bank की फतहपुरा (उदयपुर) की शाखा में लगे Complaints/Suggestions/Feedback Box की तस्वीर, जो मैंने खुद वहां विजिट के दौरान खींची। (Visit Date: 18 Feb, 2022)

इस तस्वीर में साफ शब्दों में लिखा गया है कि, 
To register your Complaints/Suggestions/Feedback...
Visit as at www.icicibank.com
Call our 24 hr. Customer Care.... (अब इसमें Customer Care के आगे कोई नंबर नहीं लिखा गया है।)

अब मुझे आप बताइये कि, क्या इतना बड़ा बैंक अपने ग्राहकों की केअर इसी तरह करता है?

आपने कभी देखा कि, यदि किसी प्रकार की शुल्क लेनी है, तो ये 01 पैसा भी कम ले लिए?

जब इनको शुल्क में किसी प्रकार की रियायत नहीं देनी है, तो सर्विस देने में क्यों रियायत करते है?

क्या पूरा शुल्क देने के बाद भी पूरी सर्विस पर ग्राहकों का अधिकार नहीं है?

क्या बैंक के लिए कोई कानून व्यवस्था नहीं है?

आपको जानकारी के लिए बता दु कि, ICICI Bank में मेरा भी खाता था, पर इनकी घटिया सर्विस को देखकर और इनकी सर्विस से काफी आहत होने के बाद मैंने अपना वह खाता बन्द करवा दिया।

Wednesday 22 September 2021

जातिवादी मानसिकता: हिंदुत्व के लिए दीमक.

मैंने एक ऐसे घर के संबंध में सुना है, जिसका मालिक कहीं दूर यात्रा पर गया था। बहुत बड़ा भवन था, बहुत नौकर थे। वर्षों बीत गए, मालिक की खबर नहीं मिली। मालिक लौटा भी नहीं, संदेश भी नहीं आया। धीरे-धीरे नौकर यह भूल ही गए कि, कोई मालिक था भी। भूलना भी चाहते हैं नौकर कि, कोई मालिक है, वे भी भूल गये!

जब कभी कोई यात्री उस महल के सामने से गुजरता और कोई नौकर सामने मिल जाता, तो वह उससे पूछता, "कौन है इस भवन का मालिक?"

तो वह नौकर कहता, "मैं!"

लेकिन आस-पास के लोग बड़ी मुश्किल में पड़े। क्योंकि कभी द्वार पर कोई और मिलता और कभी कोई, बहुत नौकर थे और हर नौकर यही कहता कि, "मालिक मैं हूं।" 

जो मिल जाता वही कहता, "मैं!"

आस-पास के लोग बड़े चिंतित हुए कि, कितने मालिक हैं इस भवन के?

फिर एक दिन गांव के सारे लोग इकट्ठे हुए और उन्होंने पता लगाया और सारे घर के नौकर इकट्ठे किये, तो मालूम हुआ कि, वहां कई मालिक थे। तब बड़ी कठिनाई खड़ी हुई, सभी नौकर लड़ने लगे। सभी कहने लगे, मालिक मैं हूं और जब बात बहुत बढ़ गई, तब किसी एक बूढ़े नौकर ने कहा, "क्षमा करें! हम व्यर्थ विवाद में पड़े हैं। मालिक घर के बाहर गया है और हम सब नौकर हैं। मालिक लौटा नहीं बहुत दिन हो गए और हम भूल गए और अब कोई जरूरत भी नहीं रही याद रखने की, क्योंकि शायद वह कभी लौटेगा भी नहीं।"

फिर मालिक एक दिन लौट आया। तो उस घर के पच्चीस मालिक तत्काल विदा हो गए। वे तत्काल नौकर हो गए।

मुझे भी उस मालिक का इंतज़ार है, जिसके आने के बाद ये जातिवादी विचारधारा रूपी नौकर (जो अपने आप को मालिक समझ बैठे है।) की विदाई हो और ये फिर से नौकर बन जाएं। ताकि ये आपस में न लड़कर अपने कर्त्तव्य के लिए लड़े।

जातिवादी विचारधारा दीमक है, जो अंदर ही अंदर हिंदुत्व को खोंखला किये जा रही है। इससे अगर बचा नहीं गया, तो जातियों के साथ कुछ और भी टूटेगा और आवाज तक नहीं होगी। वह होगा.... हिंदुत्व!

जातिवादी मानसिकता से बचना होगा, तभी हम हिंदुत्व को बचा पाएंगे।

Wednesday 21 July 2021

कूटनीति और राजनीति का एक अप्रतिम उदाहरण पेश किया है, नरेंद्र मोदी जी ने.

04 जून, 2016 को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफ़ग़ानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अमीर अमानुल्लाह खान अवार्ड" के लिए आर्यवर्त के प्रधानसेवक नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नाम की घोषणा की, तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ। पर अब उससे भी बड़ा आश्चर्यजनक काम हुआ है।

उस सर्वोच्च नागरिक सम्मान अवार्ड का फर्ज और मित्रता का कर्ज अभी तीन रात पहले उतार दिया है, नरेंद्र मोदी जी ने... जब हम सो रहे थे!

विश्व के सबसे बड़े दो सैन्य विमान हरक्यूलिस-130, हथियार, गोला-बारूद व अन्य तकनीकी उपकरणों के साथ अफगानिस्तान में काबुल सैन्य एयरपोर्ट पर उतार दिए गए है और इसके साथ ही अफगान आर्मी के हाथ असरफ गनी के मित्र मोदी ने मजबूत कर दिए है।

एकाएक अमेरिका की फ़ौज के अफगानिस्तान से हटने के बाद से ही अंदरूनी तरीके से आर्यवर्त, जम्बूद्वीप से खंडित हिन्दू भुजा अफगानिस्तान में अपनी दखल बढ़ाने की ओर बढ़ गया था। यह एक गहरी रणनीति के तहत किया गया है और इसके शीर्ष क्रम में नरेंद्र मोदी की चाणक्य नीति काम कर रही है।

लगभग गुप्त रूप से अफगान आर्मी को आर्यवर्त की ओर से सैन्य मदद मुहैया कराई जा रही है और इसके साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान पर कमरतोड़ हमले तेज कर दिए गए है।

आर्यवर्त को पूर्ण हिन्दूराष्ट्र बनाने से पहले मोदी अपने सभी पड़ोसी देशों पर अपना संतुलन स्थापित करने का काम शुरू कर चुके है और अब वो इस अवसर को भी हथिया चुके है कि, अफगानिस्तान में आर्यवर्त अपनी योजनाओं की रक्षा के लिए सैन्य शक्ति को स्थानीय लोगों की रजामंदी से स्थापित करने के लिए तैयार हो गया है।

पर्दे के पीछे मोदी ने बहुत साहस भरा दांव खेला है। जो कि, अगले एक पखवाड़े के बाद उजागर होगा। तब तक तालिबान व अफगानिस्तान, दोनों ही ओर से मोदी के मन-मुताबिक समझौते पर आने की रुपरेखा रच दी जा सकती है।

आर्यवर्त में संसद का मानसून सत्र शुरू हो गया है और इसके पहले ही आर्यवर्त ने अफगानिस्तान से मिले हुए सर्वोच्च नागरिक सम्मान अवार्ड की मित्रता का फर्ज अदा कर दिया है।

मोदी गुजराती है और व्यवहार व व्यापार के मामले में गुजराती से बड़ा कूटनीतिक खिलाड़ी और कोई नहीं है।

पहले अमेरिकन फ़ौज के समय आर्यवर्त ने अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं को प्रारंभ किया और अमेरिकन फ़ौज के अफगानिस्तान से जाते ही अपनी परियोजनाओं की रक्षा करने की आड़ में अफगान सरकार की सहायता के लिए सैन्य शक्ति का साथ देने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

अफगानिस्तान के हालात अब लगभग मोदी की चाणक्य नीति पर निर्भर हो गए है। अब संसद मानसून सत्र में मोदी कई ऐतिहासिक दृष्टि के विधेयक पेश करेंगे।

[मुझे अनायास ही मोदी जी के विदेशी दौरों के बाद हुए चाबहार बंदरगाह (आपको बता दु कि, यह बंदरगाह ईरान और पाकिस्तान के बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित है। जो समीकरण की दृष्टि से आर्यवर्त के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण है और इसे चीन के मुँह से निवाला छिनने जैसा कहा है।) समझौते की याद आ गयी। जो नरेंद्र मोदी जी की कूटनीति का एक अप्रतिम उदाहरण था। जिसे इतिहास कभी नहीं भुला सकता है।]

(नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का यह एक और कदम हिन्दूराष्ट्र की ओर अग्रसर हो चुका है।)

जय हिंद...!🙏🚩

Saturday 30 January 2021

उस मासूम की क्या गलती थी?

लड़की: बाबु, यह क्या कर रहे हो?
लड़का: शादी के बाद जो पति करता है, अपनी पत्नी के साथ, वही।
लड़की: तो अभी क्यों?
लड़का: तो मैं क्या गलत कर रहा हूँ? जो शादी के बाद करते है, वह मैं पहले कर रहा हूँ। मैं तुम्हारा पति हूँ, मेरा हक़ है, शादी से पहले।
लड़की: यह अच्छी बात नहीं...! पर शादी तो नहीं हुई ना....?
लड़का: तू सोच रही है ना कि, मैं टाइम-पास कर रहा हूँ। मैं तुझे अपनी पत्नी समझता हूँ। तुम तो.....! Ok, आज के बाद तुझे टच भी नहीं करूँगा।
लड़की: बाबु Sorry...! मैं तुम्हारी हूँ। मुझ पर सिर्फ तुम्हारा ही अधिकार है। जो चाहो, वो कर सकते हो। Sorry.....!!!
लड़का: Thank You My Sweet Wife...!!!

(02 महीने के बाद...)
लड़की: बाबु! मैं प्रेग्नेन्ट हूँ?
लड़का: क्या.......!???
लड़की: Pls मुझसे शादी कर लो न...।
लड़का: पागल हो गयी हो क्या...? अभी नहीं कर सकता शादी। मैं जोब भी नहीं करता। एक काम करो, हॉस्पिटल जाके Abortion करवा लेते है।
लड़की: नहीं...! एक मां अपनी ही बच्ची को नहीं मार सकती...!
लड़का: ठीक है, यह डिसाइड कर लो कि, तुम्हें यह किसी और का बच्चा चाहिए या मैं.......!!!
लड़की: क्या...!?? किसी और का बच्चा...!?? वा...!! बहुत अच्छा, यही सुनना बाकी रह गया था।
लड़का: और नहीं तो क्या...? जो लड़की शादी से पहले ही मेरे साथ रिलेशन्स रख सकती है, तो क्या गारंटी है कि, किसी और के साथ नहीं कर सकती हो? किसी और का बच्चा नहीं हो सकता, इस बात की क्या गारंटी है?
लड़की: छि:....!!! कुछ तो शर्म करो। भगवान सब देख रहे है। माफ़ नहीं करेंगे तुम्हें।
लड़का: सुनो...!! आज़ से अपनी शक्ल मुझे मत दिखना। किसी और के बच्चे को मेरा नाम दे रही हो। छि:...! कितनी घटिया है तू...!!?
लड़की (जोर-जोर से रोने लगती है।): ठीक है...! बहुत पछतायेगा तू...! (रोते हुए....)

(लड़की बहुत रोने लगती है और माता-पिता ने उसको घर से निकाल दिया। वो अकेली इधर-उधर घूमती रही, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की। एक दीन एक कार से उसका जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया और उसकी दर्दनाक मौत हो गयी।)

पर सवाल यह है कि, उस बच्ची की क्या गलती थी? जिसकी दुनिया में आने से पहले ही आंखें सदा-सदा के लिए बन्द हो गयी? गलती दो प्यार करने वाले करते है। पर सजा किसी और को मिलती है।

मेरा आप सभी लड़कों से निवेदन है कि, यह जो लड़कियां होती है ना, इन्हें अपनी इज्जत अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी होती हैं। यह हम लड़कों पर इसलिए भरोसा नहीं करती है कि, हम बहुत स्मार्ट है। बल्कि इसलिए करती हैं, क्योंकि वे समझती है कि, हम भी उनसे सच्चा प्यार करते है। उनको क्या पता कि, कुछ लड़के सिर्फ और सिर्फ लड़कियों को इस्तेमाल करने के लिए ही प्यार करते हैं। मर्द की मर्दानगी औरत की इज्जत लुटने से नहीं साबित होती है। बल्कि उनकी इज्जत करने से साबित होती है।

(इस महत्त्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक रचना के लिए मैं Prashant Yadav Ji को दिल से धन्यवाद देता हूँ। क्योंकि उन्होंने ही यह रचना फेसबुक के Sachi Baatein नामक पेज के द्वारा शेयर की। जिसका लिंक नीचे दिया गया है।)

लिंक...
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